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सुलहउ मणुयत्तर्णेपिउ कलत्तु जिणसासणे जं ण कया वि पत्तु
घत्ता -एम वियप्पिवि जाम थिउ प्रविधोलचित्तु सुहवंसणु । अभयादेवि विलक्ख हुयता लियमण वित्तइ पुणुपुणु ॥ 11
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पर एक्क जि दुल्लहु प्रपवित्तु ॥ 9 किह रणासमि तं चारितवितु ॥ 10
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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