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श्राणि पुत्त
सप्पाइ दुक्खु विसय वि रंग मंति
चिरु रुद्दवत्तु वढु आयरेग
सो च्छोहत्तु जूयं रमंतु
मंसासरणेरण
हिलसइ मज्जु पसरइ प्रकित्ति
जंगल प्रसंतु
मइरापमत्तु
रच्छ पडे
होता सगव्व साइरिण व वेस
तहों जो वसेइ
वेसापमत्त
कदीवेसु
जे सूर होंति वरणे तिरण चरंति
वर्णमयउलाई
पारद्धिरत्तु
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पाठ-10
सुदंसरणचरिउ
सन्धि - 2
2.10
जह श्रागमें सत्त विवसर वृत्त ॥ 1 इह दिति एक्क भवें दुण्णिरिक्खु ॥ 2 जम्मंतरको डिहिँ दुहु जरगंति 113 विडिउ णरयण्णवे विसयजुत्तु ॥14 जो रमइ जूउ वहुडफ्फरेरण ॥ 5 श्राहरणइ जरगणि सस घरिरिण पुत्तु ॥ 6 गलु तह य जुहिट्ठिल्लु विहरु पत्तु ॥ 7 वड्ढे दप्पु दप्पेरण तेरा 18 जूउ वि रमेइ बहुदोससज्जु ॥19 ते कज्जे कीरइ तहाँ रिवित्ति ॥ 10 वणु रक्खसु मारिउ गरए पत्तु ॥ 11 कलहेप्पिणु हिंसइ इट्ठमित्तु ॥ 12 उभियकरु विहलंघलु रगडेइ ॥ 13 गय जायव मज्जे खयहो सव्व | 14 रत्ताघरसरण दरिसइ सुवेस 1115 सो कायरु उच्छिउ असेइ ॥ 16 गिद्धणु हुउ इह वरिण चारुदत्तु ॥ 17 रणासंतु परम्मुहु छुट्टकेसु 11 18 सवरा हु वि सो ते रउ हरति ।। 19 रिसुणेवि खडक्कउ गिरु डरंति ॥ 20 किह हणइ मूढ किउ तेहिँ काइ ॥ 21 चक्कवs गरए उभयत्तु ॥ 22
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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