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________________ 56 श्राणि पुत्त सप्पाइ दुक्खु विसय वि रंग मंति चिरु रुद्दवत्तु वढु आयरेग सो च्छोहत्तु जूयं रमंतु मंसासरणेरण हिलसइ मज्जु पसरइ प्रकित्ति जंगल प्रसंतु मइरापमत्तु रच्छ पडे होता सगव्व साइरिण व वेस तहों जो वसेइ वेसापमत्त कदीवेसु जे सूर होंति वरणे तिरण चरंति वर्णमयउलाई पारद्धिरत्तु ] Jain Education International पाठ-10 सुदंसरणचरिउ सन्धि - 2 2.10 जह श्रागमें सत्त विवसर वृत्त ॥ 1 इह दिति एक्क भवें दुण्णिरिक्खु ॥ 2 जम्मंतरको डिहिँ दुहु जरगंति 113 विडिउ णरयण्णवे विसयजुत्तु ॥14 जो रमइ जूउ वहुडफ्फरेरण ॥ 5 श्राहरणइ जरगणि सस घरिरिण पुत्तु ॥ 6 गलु तह य जुहिट्ठिल्लु विहरु पत्तु ॥ 7 वड्ढे दप्पु दप्पेरण तेरा 18 जूउ वि रमेइ बहुदोससज्जु ॥19 ते कज्जे कीरइ तहाँ रिवित्ति ॥ 10 वणु रक्खसु मारिउ गरए पत्तु ॥ 11 कलहेप्पिणु हिंसइ इट्ठमित्तु ॥ 12 उभियकरु विहलंघलु रगडेइ ॥ 13 गय जायव मज्जे खयहो सव्व | 14 रत्ताघरसरण दरिसइ सुवेस 1115 सो कायरु उच्छिउ असेइ ॥ 16 गिद्धणु हुउ इह वरिण चारुदत्तु ॥ 17 रणासंतु परम्मुहु छुट्टकेसु 11 18 सवरा हु वि सो ते रउ हरति ।। 19 रिसुणेवि खडक्कउ गिरु डरंति ॥ 20 किह हणइ मूढ किउ तेहिँ काइ ॥ 21 चक्कवs गरए उभयत्तु ॥ 22 For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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