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________________ श्रवरहि समऍ जाम उग्घाडइ श्रच्छउ रयरणसमूहु सरूवउ तं निसुणेवि कुमारें वुच्चइ यहि नयरें सियालु पइट्ठउ भक्खतेण दंत-वरणें कारिणउँ हुऍ पहाएँ बस - श्रामिसमुज्झिउ भयकंपिरु नीसरिवि न सक्कउ अप्पर मुयउ करिवि वरिसावमि दीes दिवस मिलिय पुरलोएं प्रसहत्थु लुउ पुच्छ - सकरणउ जीवेस मि श्रपुच्छु विणु कण्ण हिँ वोल्लइ अवरु एक्कु कामुयजण पाहणु लेवि दंत किर चूरइ खंडिय पुच्छ - कण्ण मण्यि तिणु चितवि मुक्कु धाउ जव-पारों मारिउ ताम जारण कयनाएं इय विसयंधु मृदु जो अच्छ 52 घत्ता- - साहीर लच्छि नउ भुंजइ महइ समग्गल सग्गदिहि | संखिरिहि जेम वरइत्तहीँ करें लग्गेसइ सुखनिहि ॥ 22 रित्तउ नियवि करहिं सिरु ताडइ || 20 सो वि विठु मूलि जो रूवउ ॥ 21 Jain Education International 9.11 विसु साहीणु किं न लहु मुच्चइ || 1 मुउ बलद्दु रच्छामुहें दिट्ठउ 12 रयणिविरामपमाणु न जाणिउँ ॥3 11 4 11 5 जर संचारवमालें बुज्झिउ चितियमंतु पडेविणु थक्कउ किर ऋणु पुणु वि निसागमि पावमि ॥ एक्क नरेंग पवड्ढियरोएं 117 चितs जंबुउ श्रज्ज वि धण्णउ 118 एकबार जइ छुट्टमि पुण्ण हिं ॥19 गेहमिदन्तु करमि वसि पियमणु ॥ 10 जाणिव जंबुउ हियइ बिसूरइ ॥ 11 दुक्करु जीवियास दंतहिं विणु लइउ कंठें हरिसरिसें सा खद्धउ मिलिवि सुरगहसमवाएं कवरभंति सो पलयहों गच्छा || 12 # 13 # 14 Ir 15 For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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