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पाठ-9
जंबूसामिचरिउ सन्धि -9
9.8 विरणयसिरोएँ कहाणउ सीसइ संखिणिनिहि वरइत्तहों दोसइ ॥1 कम्मि पुरम्मि दरिद्दे ताडिउ संखिरिण नाम को वि कव्वाडिउ ॥2 दिणि दिणि वणे कव्वाडहाँ धावइ । भोयरणमत्तु किलेसे पावइ ॥3 भुत्तसेसु दिवसेसु पवनउ रूवउ एक्कु रोक्कु संपन्नउ ॥4 महिलसहाएँ रहसें चड्डिउ कलसे छुहवि धरायले गड्डिउ ॥5 अह रविगहणे कयावि विहारणइँ चलियइँ तित्थे चयवि नियथारणइँ ॥6 पूरिएहिँ मणिरयणसुवण्णहिँ अवलोडउ संखिरिणनिहि अण्णहिँ ॥7 मंतिज्जएँ पाएरण असारे खडहडंतरूवयसंचारें
॥8 जाणाविउ लोयारण समग्गा अम्हइँ गिहाविज्जहु लग्गा ॥9 चितवि तम्मि छुद्ध निउ भल्लउ एक्केक्कउ मरिणरयणु गरिल्लउ ।। 10 सो संपुण्णु करेवि पवत्तइँ ण्हाऍवि तित्थें निययघरु पत्तइँ ॥11 अह छरणदिरिण महिलाएँ कहिज्जइ रूवउ अज्जु नाह विलसिज्जइ ॥ 12 संखिरिण खणइ कलसु जहिँ धरियउ दिउ ताम करणयमरिणभरियउ ॥13 सरहसु रहसँ कहिउ पिएँ पेक्खहि मई सम पुण्णवंतु को लक्खहि ॥ 14 अज्जवि सिद्धिनएण निहाणे रयमि उवाउ अवरु मइनाणें ॥15 कि पि न लेमि करेमि न खोयणु होसइ कव्वाडेण वि भोयणु ॥16 अह कलसेसु छुहें वि एक्केक्कउ बहु दविरणासऍ गड्डेवि मुक्कउ ॥17 अण्णहिँ पन्च पुणु वि पहँ दिइ पूरहु केम हियएँ न पइट्ठइ ॥ 18 निहिहिँ रयणु एक्केक्कउ लइयउ सुण्णउ कवि सम्वु परिचइयउ ॥ 19
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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