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________________ तुम्हइं विणि वि जरग जरगहु चक्खु खरपहरणधारादारिएग किर काई वराएं दंडिएरण दोहं मि केरा मज्झत्थ होवि पहिलउ अवरोप्परु दिट्ठि धरह बीउ हंसावलिमारिए जुज्झह बिगि विरिणवमल्ल ताम वरोरु जिरिवि परक्कमेरेग घत्ता - श्रवलोयंतु धराहिवइ एत्तिउ किज्जउ सुत्तु सुजुत्तउ | तुम्हहं दोहं मि होउ रणु तिविहु धम्मगाएर खिउत्तर || 12 तणुसोहाहसियपुरंदरेहि कि दूहवियहि रगवजोव्वणेग इच्छहु अम्हारउ धम्मपक्खु कि किंकररियरें मारिएल सीमंतिरसत्यें डिएग 48 ] 11 8 119 11 10 उहु मेल्लिवि खमभाउ लेवि ॥ 11 Jain Education International 17.10 धत्ता - जे रंग करंति सुहासियई मंतिहिं भासियाइं गयवयरपई । ताहं परिदहं रिद्धि को कहिं सीहासणछत्तई रयणई ॥ 10 मा पत्तलपत्तरण चलणु करह # 1 अवरोप्परु सिंचहु पारिणा ॥ 2एक्केरण तुलिज्जइ एक्कु जाम ॥ 4 गेहहु कुलहर सिरि विक्कमेण ॥5 ता चितिउ दोहिं मि सुंदरेहिं ॥16 कि फलिएरण वि कडुएं वणेण ॥ 7 For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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