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महापुराण
सन्धि - 16
ता पत्तो चरो पुरं रिवइणो घरं भरणइ सुरग सुराया । इसरो तुह सहोयरा सीलसायरा अज्जु देव जाया ॥ 1 एक्कु जि पर बाहुबलि सुदुम्मइ रंगउ त करइ रण तुम्हहं परणवइ || 2
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16.11
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16.19
केसरिकेसरु वरसइथ लयलु
जो हत्थे छिवइ सो केहउ हउं सो परणवमि को सो भाइ कि जम्मरिण देवहि ग्रहिसिचिउ कि तह प्रग्गइ सुरवइ गच्चि चक्कु दंडु तं तासु जि सारउ करिसूयर रहवरडिभयरहं भरहु हरइ कि मज्भु भुयाभरु
जं दिण्णं महेसिरा दुरियणासिरगा रगयरदेस मेत्तं ।
तं मह लिहिसासणं कुलविहसणं हरइ को पहुत्तं ॥ 1
पोयणणयरु प्राइजिणिदें
घत्ता
-तहु मेइणि मह दिण्णउं । भिड पड प्रसि सिहिसिहहिं जइ ण सरइ पडिपवण्णउं || 10
सुहडहु सरण मज्भु धरणीयलु ॥ 2 कि कयंतु कालारणलु जेहउ 113 महिखंडेण कवरण परमुण्गइ ॥ 4 कि मंदरगिरिसिहरि समच्चिउ ॥ 5 सिरिसइरिणिय किं रोमंचिउ || 6 महु पुणु णं कुंभारहु केरउ 11 7 पर णिहणमि रणि जे वि महारह ॥ 8 तइ चुक्कइ जइ सुमरइ जिरणवरु ॥ 9
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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