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पहु प्रासण्णु लहइ चिट्ठत्तणु मोणे जड़ भडु खंतिइ कायर अमुरिणयहिययचारुगस्यत्ते महुरपयंपिरु चाडुयगारउ
पविरलदसणु पिण्रणेहत्तणु ॥8 प्रज्जवु पसु पंडियउ पलाविरु ॥9 कलहसीलु भण्णइ सुहडतें ॥10 केम वि गुरिण ण होइ सेवारउ ॥1
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अहवा तेहिं कि हयं जं समागयं दुल्लहं परतं ।
तं जो विसयविसरसे घिवइ परवसे तस्स कि बुहत्तं ॥1 कंचणकं. जंबुउ विधा मोत्तियदामें मंकडु बंधइ ॥2 खोलयकाररिण देउलु मोडइ सुत्तणिमित्तु दित्तु मरिण फोडइ ॥3 कप्पूरायररुक्खु रिणसुंभइ कोद्दवछत्तहु वइ पारंभइ ॥4 तिलखलु पयइ डहिवि चंदणतरु । विसु गेण्हइ सप्पहु ढोयवि करु ॥5 पीयई कसणइं लोहियसुक्कइं। तकें विक्कइ सो माणिक्कइं ॥6 जो मणुयत्तण भोएं णासह तेण समाणु होणु को सीसइ ॥7 चित्तु समत्तणि रणेय रिणयत्तइ । पुत्तु कलत्तु वित्तु संचितइ ॥8 मरइ रसरणफंसणरसदड्ढउ मे मे मे करंतु जिह मेंढउ ॥9 खज्जइ पलयकालसन्दूलें डज्झइ दुक्खहुयासणजालें ॥10 मंजरु कुंजरू महिसउ मंडलु होइ जीव मक्कडु माहुंडलु ॥1 पत्ता-केलासहु जाइवि तवयरण ताएं भासिउ किज्जइ ।
जेणेह सुदूसहतावयरि संसारिणि तिस छिज्जइ ॥12
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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