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घत्ता - जो तेण डाहु उप्पाइयउ पिसुणालाव - भरोसिऍग । सो दुक्क उल्हाविज्जइ मेह-सएण वि वरिसिऍग ॥ 8
रण भीय सइत्तरण - गव्वें बलैवि पवोल्लिय मच्छर- गव्वें ॥ 7 'पुरिस खिही होन्ति गुणवन्त वि तियहँ रग पत्तिज्जन्ति मरन्त वि ॥ 8
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83.8
घत्ता — खडु लक्कडु सलिलु वहन्तियहँ पउराखियहँ कुलुग्गयहँ । रयणाय खारइँ देन्तउ तो वि रग थक्कड सम्मयहँ ॥ 9
साणु र केरा वि जरग गरिगज्जइ ससि स-कलंकु तहिँ जि पह रिणम्मल उवलु पुज्जु रग केरण वि छिप्प धुज्जइ पाउ पंकु जइ लग्गइ दीवउ होइ सहावें कालउ गर-गारिहिं एवड्डुउ प्रन्तरु ऍह पइँ कवरण वोल्ल पारम्भिय तु पेक्खन्तु प्रच्छु वीसत्थउ
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83.9
गङ्गा - गइहिं तं जि व्हाइज्जइ ॥ 1 कालउ मेहु तहिँ जें तडि उज्जल ।। 2 तहिँ जि पडिम चन्दण विलिप्पs || 3 कमल - माल पुणु जिण हों वलग्गइ || 4 वट्टि - सिहऍ मण्डिज्जइ श्रालउ || 5 मरणें वि वेल्लि ण मेल्लइ तरुवरु ।। 6 सइ-वडाय मइँ श्रज्जु समुब्भिय || 7 डहउ जलणु जइ डहेंवि समत्थउ ॥ 8
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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