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________________ पाठ-12 करकंडचरिउ 2.16,17,18 प्रस्तुत काव्यांश मुनि कनकामर रचित करकंडचरिउ से लिये गये हैं। अंगदेश का राजा धाडीवाहन रानी पद्मावती के साथ हाथी पर बैठकर सैर करने जाते हैं । दैवयोग से हाथी जंगल की ओर भागता है, राजा तो एक पेड़ को पकड़कर बच जाते हैं पर हाथी रानी को लेकर आगे निकल जाता है। हाथी एक जलाशय में प्रवेश करता है और रानी कूदकर वन में प्रवेश करती है । उसके प्रभाव से वन हरा-भरा हो जाता है । वनमाली उसे अपने घर बहन बनाकर ले जाता है। परन्तु उसकी पत्नी दोनों पर सन्देह करती है और रानी को श्मशान में छुड़वा देती है। श्मशान में रानी एक पुत्र को जन्म देती है । उस पुत्र को रानी के लाख मना करने पर भी एक मातंग (चाण्डाल) यह कहकर ले जाता है कि मैं एक विद्याधर हूँ और श्राप के कारण मातंग हो गया हूँ। श्राप देते समय मुनि ने यह भी ब दंतिपुर के श्मशान में करकंडु का जन्म हो तो उसका लालन-पालन करना, वह जब पुनः राज्य प्राप्त करेगा तो तुम विद्याधर हो जाओगे। इस तरह रानी को समझाकर यथोचित लालन-पालन की प्रतिज्ञा कर वह उस बालक को ले जाता है । वह उसे नाना प्रकार की विद्याएं सिखाता है तथा सत्संगति की शिक्षा देता है। कहा था । प्रस्तुत काव्यांश में विद्याधर उसे उच्च पुरुषों की संगति का फल एक कहानी के माध्यम से समझा रहा है। विद्याधर बताता है कि एक वणिक एक उच्च पुरुष की संगति कर किस तरह भूमण्डल का उपभोग कर सकता है, उसकी कीर्ति किस प्रकार फैलती है। अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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