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मुनि रामसिंह
रामसिंह जैन मुनि थे और जैन आध्यात्मिक रहस्यवादी धारा के प्रमुख कवि ।।
इनके सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं मिलती । अनुमानतः ये पश्चिम प्रदेश के निवासी थे । पण्डित राहुल सांकृत्यायन इन्हें राजस्थान का बताते हैं । क्योंकि इनके उदाहरण एवं उपमाएं राजस्थानी रंग में रंगे हुए हैं। इनके दोहों में प्रयुक्त शब्द योम एवं तांत्रिक ग्रन्थों का स्मरण दिलाते हैं जिनके पीठ राजस्थान में सबसे अधिक हैं । इससे भी यह अनुमान दृढ़ होता है कि ये राजस्थान के थे ।
डॉ. हीरालाल जैन इनका समय 10वीं शताब्दी मानते हैं।
पाहुडदोहा- पाहुडदोहा मुनि रामसिंह की एकमात्र कृति है। पाहुड का अर्थ उपहार, अधिकार, श्रुतदान आदि होते हैं । यहां यह 'उपहार' के विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त है । पाहुडदोहा जैन मुनियों की आत्मानुभूति, परमात्म-संदेश का सरल भाषा तथा दोहा छन्द में मानव जीवन के लिए 'उपहार' स्वरूप है। 'पाहुडदोहा' अात्मानुभूतियों का संग्रह है, उसी का उपहार है, मेंट है ।
इस ग्रन्थ में गुरु की महत्ता स्वीकार्य है किन्तु अधिक महत्व आत्मानुभूति को ही दिया गया है, उसके सामने केवल शब्दज्ञान को व्यर्थ बताया गया है ।
मुनि रामसिंह उदारमना चिन्तक हैं जो सम्प्रदाय और समाज की रूढ़ियों का विरोध करते हुए मानवता की सामा य भूमि पर खड़े हैं। ये साम्प्रदायिकता व संकीर्णताओं के विरोधी हैं । इन्होंने उस जनसाधारण के लिए ज्ञान के सहज द्वार खोले हैं जिसे पढ़ने-लिखने की सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती थी।
मुनिश्री की भाषा सरल, सहज और पैनी है । तथ्य और उसकी अभिव्यक्ति दोनों ही असरदार है । ऐसी संक्षिप्त एवं भावपूर्ण, सटीक अभिव्यक्ति पूरे अपभ्रंश साहित्य में कम ही देखने को मिलती है।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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