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अमर-वहूहिँ व चवण-पुरन्दर भमरावलिहि म्व सूडिय-तरुवरु कलयण्ठीहि म्व माहव-णिग्गमु बहुल-पनोसु व तारा-पन्तिहिं दस-सिरु दस-सेहरु दस-मउडउ
गिम्भ-दिसाहिँ व अजण-महिहरु ॥4 कलहंसीहि म्व अ-जलु महा-सरु ॥5 णाइणिहिँ व हय-गरुड-भुयङ्गम् ॥6 तेम दसास-पासु ढुक्कन्तिहिँ ॥ 7 गिरि व स-कन्दरु स-तरु स-कूडउ ॥8
घत्ता-रिणऍवि अवत्थ दसाणणहाँ हा हा सामि' भणन्तु स-वेयणु ।
अन्ते उरु मुच्छा-विहलु गिवडिउ महिहिं झत्ति णिच्चेयणु ॥9
सन्धि-77 भाइ - विनोएं जिह जिह करइ विहीसणु सोउ । तिह तिह दुक्खैण रुवइ स-हरि-वल-वाणर-लोउ ।
77.1 दुम्मणु दुम्मरण-वयणउ
अंसु-जलोल्लिय-णयणउ । ढुक्कु कइद्धय सत्थउ
जहिं रावणु पल्हत्थउ ॥1 तेण समाणु विरिणग्गय-णामहिं दिठ्ठ दसाणणु लक्खरण-रामहि ॥2 दिइँ स-मउड-सिरई पलोट्टई गाइँ स-केसराई कन्दोट्टई॥3 दिट्ठइँ भालयलइँ पायडियइँ अद्धयन्द-विम्वाइँ व पडियइँ॥4 दिइँ मरिण-कुण्डलइँ स तेयइँ णं खय-रवि-मण्डलइ प्ररणेयई॥5 दिउ भउहउ भिउडि-करालउ रणं पलयग्गि-सिहउ धूमालउ ॥6 दिट्टई दीह-विसालइँ णेत्तइँ मिहुणा इव अामरणासत्तइँ॥7 मुह-कुहरइँ दट्ठोट्टई दिट्ठई जमकरणाई व जमहाँ अणिट्ठई। 8 दि महब्भुव भड-सन्दोहें । णं पारोह मुक्क णग्गोहें ।।9
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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