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________________ विसयसुह विषयों (से उत्पन्न) सुखों को जो नहीं कमी हृदय में धारण करते हैं हियइ धरंति [(विसय)-(सुह) 2/2] (ज) 1/2 सवि अव्यय अव्यय (हियअ) 7/1 (धर) व 3/2 सक (त) 1/2 सवि [(सासय) वि-(सुह) 2/1] अव्यय (लह) व 3/2 सक (जिणवर) 1/2 अव्यय (भण) व 3/2 सक सासयसुह लह लहहि जिणवर अविनाशी सुख को शीघ्र प्राप्त करते हैं जिनवर इस प्रकार कहते हैं एम भणंति वि भुजंता विसय सुह भाउ अव्यय अव्यय भी (भुंज→ जंत) वकृ 1/2 भोगते हुए (विसय) 6/2 विषयों के (सुह) 2/2 सुखों को (हिय+अडअ→हियडअ) 7/1 अडअ' स्वार्थिक हृदय में (भाअ) 2/1 आसक्ति को (धर) व 3/2 सक रखते हैं (सालिसित्थ) 1/1 सालिसिस्थ अव्यय जैसे (वप्पुडा+अउ→वप्पुडउ) 1/1 वि (दे.) बेचारा (णर) 1/2 मनुष्य (गरयौ) 6/2 नरकों में (णिवड) व 3/2 अक गिरते हैं धरंति सालिसित्थु जिम वप्पुड णर णरयह णिवडंति 5. आयइंट अडवड बडवाइ (आयअ) 7/1 (अडवड) 1/1 वि (वडवड) व 3/1 अक अव्यय (रंज→रंजिज्ज) व कर्म 3/1 सक (लोअ) 1/1 [(मण)-(सुद्ध) 7/1 वि] आपत्ति में अटपट बड़बड़ाता है किन्तु खुश किया जाता लोक मन के कयाषरहित होने पर रंजिज्जा लोउ मणसुद्ध 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)। 2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 146 । 184 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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