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ous fartaणु सोयक्कमियउ
तुहुँ ग जिनोऽसि सयलु जिउ तिहुश्रणु तुहुँ पडिप्रोऽसि ण पडिउ पुरन्दरु दिट्ठि ण गट्ठ रगट्ठ लङ्काउरि हारु र तुट्टु तुट्टु तारायणु चक्कु रंग ढुक्कु ढुक्कु एक्कन्तरु जीउ ण गउ गउ प्रासा - पोट्टलु सीय रण प्राणिय प्राणिय जमउरि
दिट्ठ पुरणो वि जाहु पिय-गारिहिँ
वाहिणिहिँ व सुक्कल रयरणायरु कुमुइणिहि व्व जरढ-मयलञ्छणु
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1
पाठ 4
पउमचरिउ
सन्धि - 76
76.3
घत्ता - सुरवर सण्ढ वराइणा सयल-काल जे मिग सम्भूया । रावण पइँ सोहेण विणु ते वि अज्जु सच्छन्दोहूया' ॥ 9
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'तुहुँ रगत्थमिउ वंसु श्रत्थमिय ॥ 1 तुहुँ रण मुझेोऽसि मुनउ वन्दिय जणु ॥ 2 मउडुरंग भग्गु भग्गु गिरि - मन्दरु || 3 वाय रग रगट्ठ गट्ठ मन्दोयरि ॥ 4 हियउ ग भिष्णु भिण्णु गयणङ्गणु ॥ 5 प्राउ रंग खुट्टु खुट्टु रयणायरु ।। 6 तुहुँ ण सुत्तु सुत्तउ महि-मण्डलु ॥ 7 हरि-वल कुद्ध रग कुद्धा केसरि ॥ 8
76.7
सुत्तु मत्त-हत्थि व गणियारिहिं ॥ 1 कमलिणिहिँ व प्रत्थवण - दिवायरु || 2 विज्जुहि व्व छुड छुड वरिसिय घणु ॥ 3
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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