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श्रागमे धम्मोवसु
सुलहउ सुकईयणे
मइविसेसु
9. सुलहउ मणुयत्तणे
पिउ
कलत्तु
पर
एक्क
1.
ཚེ
जि
दुल्लह
10. जिणसासणे
जं
पवित्
Þ
कयावि
पत्तु
किह
णासमि
तं
चारितवित्तु
11. एम वियपिकि
जाम
थिउ
अभिलचित्
सुहदंसण
अभयादेवि
विलक्ख
126 J
( आगम) 7/1
श्रागम में
[ ( धम्म) + ( उवएसु) ] [ धम्म ) - ( उवएस ) 1/1] मूल्यों (धर्म) के उपदेश
( सुलहअ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
सुलभ
सुकविजन में
बुद्धि की श्रेष्ठता
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[ ( सुकई) 1 - ( यण) 7 / 1]
[ ( मइ ) - (विसेस) 1 / 1]
( सुलहअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
( मणुयत्तण) 7/1
(पिअ) 1 / 1 वि
( कलत्त) 1 / 1
अव्यय
( एक्क) 1 / 1 वि
अध्यय
( दुल्लह) 1 / 1 वि
( अपवित्त ) 1 / 1 वि
[ ( जिरण ) - ( सासरण) 7/1 ]
(ज) 2/1 स
अव्यय
अव्यय
( पत्त ) भूकृ 1 / 1 अनि
अव्यय
(पास) व 1 / 1 सक (त) 2 / 1 सवि [(after)-(far) 2/1]
अव्यय
( वियप्प + इवि ) संकृ
समास के कारण दीर्घ हुआ है ( है. प्रा. व्या. 14)
अब्यय
(थिअ ) भूकृ 1 / I अनि
( अविओलचित्त ) 1 / 1 वि
[ ( सुह ) वि - ( दंसण) 1 / 1]
( अभयादेवि ) 1 / 1
(विलक्ख) 1 / 1 वि
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सुलभ
मनुष्य श्रवस्था में
प्रिय
पत्नी
किन्तु
एक
हो
दुर्लभ
प्रतिपवित्र
जिन शासन में
जिसको
महों
कमी ( भी )
प्राप्त किया
कैसे
बर्बाद क
उस ( को ) afraरूपी धन को
इस प्रकार
विचार करके
जब
हुआ
शान्त चित्तवाना
मनोहर, दर्शन
प्रभयादेवी
नज्जित
| अपभ्रंश काव्य सौरम
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