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________________ बहुदोससज्ज [(बहु) वि-(दोस)-(सज्जु)12/1] बहुत सी बुराइयों में गमन 10. पसर अकित्ति ते→तें कज्जे-कज्जें कोरइ (पसर) व 3/1 अक (अकित्ति) 1/1 (त) 3/1 सवि (कज्ज) 3/1 (कीरइ) व कर्म 3/1 सक अनि (त) 5/1 स (रिणवित्ति) 1/1 फैलता है अपयश उस कारण से - की जानी चाहिए उससे निवृत्ति तहो रिणवित्ति 11. जंगलु असंतु वणु रक्खसु मारिउ णरए पत्तु (जंगल) 2/1 (अस→असंत) वकृ 1/1 (वरण) 1/1 (रक्ख स) 1/1 (मार→मारिअ) भूकृ 1/1 (णरअ) 7/1 (पत्त) भूकृ 1/1 अनि मांस खाते हुए वन राक्षस मारा गया नरक पाया 12. मइरापमस्तु [(मइरा)-(पमत्त) भूकृ 1/1 अनि मदिरा के कारण नशे में चूर हुआ कलहेप्पिणु हिसइ इट्टमित्तु (कलह+एप्पिणु) संकृ (हिंस) ब 3/1 सक [(इट्ठ)-(मित्त) 2/1] झगड़ा करके कष्ट पहुंचाता है प्रिय मित्र को 13. रच्छहे पडे उम्भियकर विहलंघलु (रच्छा ) 6/1 (पड) व 3/1 अक. [(उभ→उब्भिय) संकृ -(कर) 2/1] (विहलंघल) 1/1 वि (ड) व 3/1 अक राजमार्ग पर गिर जाता है ऊँचा करके, हाथ को उन्मत्त शरीरवाला नाचता है 14. होता सगव्य (हो→होंत) वकृ 1/2 (सगव्व) 1/2 वि होते हुए घमंडी i 1. सर्ज-सज्जु गमन, अनुसरण, (संस्कृत-हिन्दी कोश, आप्टे)। 2. यह विधि-अर्थ में भी प्रयुक्त होता है, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 121। श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 2481 4. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-135)। 5. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)। 114] [ अपभ्रंश काव्य सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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