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कि वालहों सम्मत्तु म होश्रो कि वालहों जर-मरणु ण दुक्कइ तं णिसुखेवि भरहु रिम्भच्छिउ एवहिँ सयलु वि रज्जु करेवउ
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fक वालों उ इट्ठ- विप्रोप्रो ॥5 कि वालहों जमु दिवसु वि चुक्कइ' ।। 6 'तो कि पहिलउ पट्टु पडिच्छिउ ॥ 7 पच्छलें पुणु तव चरणु चरेवउ' ॥ 8
घत्ता - एम भरणेप्पिणु राउ सच्चु समप्पेंवि मज्जहँ । भरहों वन्धेवि पट्टु दसरहु गउ पव्वज्जहे ॥ 9
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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