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मरगइ मण्णइ कुलकति पुहइ
अव्यय (मण्ण) व 3/1 सक (मण्ण) व 3/1 सक [(कुल)-(कलि) 210] (पुहइ) 2/1 अव्यय (दा) व 3/1 सक (दा) व 3/4 सक [(वाण)+ (भरवलि)] [(वाण)-आवलि) 2/11
नहीं विचारता है विचारता है कुटुम्ब का झगड़ा युवी नहीं देता है देता है बारणों की पंक्ति
देड
पाणावलि
7. तुज्न
तुमको नहीं
रगवड
मुरिणवंड अंगु
( तुम्ह) 4/1 व अव्यय (णव) ब 3-1 सक (णव) व 31/ सक I (मुणि)-(तण्डव' ) 2| (अंग) 2/1 अव्यय (क) व 3/1 सक (कड्ड) व 3/1 सक (खंड) 22
प्रणाम करता है प्रणाम करता है मुनि समूह को अंग को नहीं बाहर निकालता (खोंचता है बाहर निकालता (खींचता) है तलवारों को
कड्डइ खंडन
8. देव
भाइ
(देव) 8/1 अव्यय (दा) व 3/1 सक (भाइ) 1/1 (तुम्ह) 4/17 (पोयण) 2/1 अव्यय (जाण) ब 1/1 सक (दा) भवि 3/1 सक (रण)-(भोयण) 2/1]
नहीं देता है (देगा) भाई तुम्हारे लिए 'पोदनपुर
तुह पोयणु
पर
किन्तु
जाणमि
देसह
जानता है देगा रग-रूपी भोजन
रणभोयणु
ढोयइ रयरखई गउ
(ढोय) व 3/1 सक (रयरण) 2/2
भेंट करता है (करेगा) रत्नों को
अव्यस
1. तण्डव-तण्डवु→तण्डउ
अपभ्रंश काव्य सौरभ ।
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