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दीसवन्तु मयलञ्छरण-विम्वु व तो वि जीउ पुणु रज्जहाँ कङ्खइ
बहु-दुक्खाउरु दुग्ग-कुडुम्वु व ॥ 7 अणुदिणु प्राउ गलन्तु ण लक्खइ ॥8
घत्ता - जिह महुविन्दुहँ कज्ज करहु ण पेक्खइ कक्करु ।
तिह जिउ विसयासत्तु रज्जे गउ सय-सक्करु ॥१
24.4 भरहु चवन्तु णिवारिउ राएं ____ 'अज्ज वि तुझु काइँ तव-वाएं ॥1 अज्ज वि रज्जु करहि सुहु भुजहि अज्ज वि विसय-सुक्खु अणुहुञ्जहि ॥2 अज्ज वि तुहुँ तम्बोलु समारणहि अज्ज वि वर-उज्जाणइ मारणहि ॥3 अज्जु वि अंगु स-इच्छऍ मण्डहि अज्ज वि वर-विलयउ अवरुण्डहि ॥4 अज्ज वि जोग्गउ सव्वाहरणहाँ ___ अज्ज वि कवणु कालु तव-चरणहाँ ॥5 जिण-पव्वज्ज होइ अइ-दुसहिय के वावीस परीसह विसहिय ॥6 के जिय चउ-कसाय-रिउ दुज्जय के प्रायामिय पञ्च महव्वय ॥7 के किउ पञ्चहुँ विसयहुँ रिणग्गहु के परिसे सिउ सयलु परिग्गहु ॥8 को दुम-मूले वसिउ वरिसाल' को एक्कंगें थिउ सीयालऍ ॥9 के उण्हालएँ किउ अतावणु ऍउ तव-चरणु होइ भीसावण ॥ 10
घत्ता - भरह म वड्ढि उ वोल्लि तुहं सो अज्ज वि वालु । . भुजहि विसय-सुहाई को पव्वज्जहँ कालु' ॥11
24.5
तं णिसुरणेवि भरहु प्रारुट्ठउ 'विरुयउ ताव वयणु पइँ वृत्तउ किं वालत्तणु सुह हिं रण मुच्चइ किं वालहों पव्वज्ज म होमो
मत्त-गइन्दु व चित्तें दुट्ठउ ॥1 किं वालहों तव-चरणु रण जुत्तउ ॥2 कि वालहों दय-धम्मु ण रुच्चइ ॥3 किं बालहों दूसिउ पर-लोनो ॥4
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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