________________
पाठ--2
पउभचरिउ
गएँ वरण-वासहाँ राम थिय रणीसास मुअन्ति
सन्धि-24
उज्झ रण चित्तहाँ भावइ । महि उण्हालएँ रणावइ ।
24.1
सयलु वि जणु उम्माहिज्जन्तउ उज्वेल्लिज्जइ गिज्जइ लक्खणु सुइ-सिद्धन्त-पुराणेहि लक्खणु अण्णु वि जं जं कि पि स-लक्खणु का वि रणारि सारङ्गि व वुण्रणी का वि रणारि जं लेइ पसाहणु का वि णारि जं परिहइ कङ्कणु का वि पारि जं जोयइ दप्पणु तो एत्थन्तर पारिणय-हारिउ 'सो पल्लङ्कु तं जै उवहारणउ
धत्ता-तं घरु रयण ताई
___ रणवर ण दीसइ माएँ
खणु वि रण थक्कइ णामु लयन्तउ ॥1 मुरव-वज्ज वाइज्जइ लक्खणु ॥2 प्रोङ्कारेण पढिज्जइ लक्खणु ॥3 लक्खण-गामें वुच्चइ लक्खणु ॥4 वड्डी धाह मुएवि परुणरणी ॥5 तं उल्हावइ जाण इ लक्खणु ॥6
धरइ सु-गाढउ जारगइ लक्खणु ॥7 __अण्णु रण पेक्खइ मेल्लेवि लक्खणु ॥8
पुरै वोल्लन्ति परोप्परु णारिउ ॥9 सेज्ज वि स ज्जै तं जै पच्छाणउ ॥ 10
तं चित्तयम्मु स-लक्खणु ।
रामु ससीय-सलक्खणु' ॥ 24.3
जं पीसरिउ राउ प्राररान्दे 'हउ मि देव पइँ सहुँ पठवज्जमि रज्जु असारु वारु संसारहो रज्जु भयङ्करु इह-पर-लोयहाँ रज्जे होउ होउ महु सरियउ रज्जु अकज्जु कहिउ मुरिण-छेयहिँ
वुत्तु एवेप्पिणु भरह-गरिन्दे ॥1 दुग्गइ-गामिउ रज्जु रण भुजमि ॥2 रज्जु खरणेरग रगेइ तम्बारहों ॥3 रज्जें गम्मइ रिगच्च-रिणगोयहो ॥4 सुन्दरु तो किं पइँ परिहरियउ ॥5 दुट्ठ-कलत्तु व भुत्तु अणेयहिँ ॥6
8
]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org