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________________ एत्तिउ रुअमि दसासहो। इतना रोता हूँ दसमुखवाले (रावण) के द्वारा अव्यय (अ) व 1/1 अक [(दस)+ (आसहो)] [[(दस) वि-(आस)6/1] वि] (भर) भूकृ 1/1 (भुवण) 1/1 अव्यय (अयस) 6/1 भरिउ भुवणु भर दिया गया जगत कि अयसहो। अपयश से सरीरें 2. एण (ण→णेण→एण) 3/1 सवि (प्रा.) (सरीर) 3/1 शरीर के द्वारा अविरणय-याणे [(अविणय)-(थाण) 3/1] वि] दोष के घर दिद-गटू-जल-विन्दु-समाणे [(दिट्ट) भूक अनि-(णट्ठ) भूक अनि-(जल)- देखा गया, नाश को प्राप्त, (विन्दु)-(समारण) 3/1] जल-बिन्दु के समान 3. सुरचावण अथिर-सहाय तडि-फुरणेण [(सुर)-(चाव) 3/1] अव्यय [[(अथिर) वि-(सहाव) 3/1] वि] [(तडि)-(फुरण) 3/1] अव्यय [(तक्खण)-(भावें)] तक्खण=अव्यय (भाव) 3/1 इन्द्र धनुष के समान अस्थिर-स्वभाववाले बिजली की चमक के समान तक्खण-भावें शोध (परिवर्तनशील) अवस्था होने से 4. रम्मा-गम्भेण {(रम्भा)-(गम्भ) 3/1] णीसारें पक्व-फलेण अव्यय (णीसार) 3/1 वि [(पक्व) वि-(फल) 3/1] अव्यय [(सउण)+(आहारें)] [(सउण)-(आहार)3/1 वि] केले के पेड़ के भीतर (के भाग) के . समान साररहित पके फल के समान पक्षियों के (प्रिय) भोजन सउणाहारें 11. तउ तप नहीं (तअ) i/1 अव्यय (चिण्ण) भूकृ 1/1 अनि [(मण)-(तुरअ) 1/I] चिण्णु मरण-तुरज किया गया मनरूपी घोड़ा 1 कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134)। 2. तुल्य (समान) का अर्थ बतानेवाले शब्दों के साथ तृतीया या षष्ठी विभक्ति होती है। अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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