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णरिन्दस्स सोऊरण पव्वज्ज-यज्जं ससा दोणरायस्स भग्गाणुराया गया केक्कया जत्थ प्रत्थाण-मग्गो वरो मग्गियो ‘णाह सो एस कालो 'पिए होउ एवं' तो सावलेवो
स-रामाहिरामस्स रामस्स रज्जं ॥1 तुलाकोडि-कन्ती-लयालिद्ध-पाया ॥2 णरिन्दो सुरिन्दो व पीढं वलग्गो ॥6 महं णन्दरणो ठाउ रज्जाणुपालो' ॥7 समायारियो लक्खरणो रामएवो ॥8
पत्ता- 'जइ तुहुँ पुत्तु महु
छत्तइँ वइसरणउ
तो एत्तिउ पेसणु किज्जइ ।
वसुमइ भरहहाँ अप्पिज्जई' । 23.3
चिन्तावण्णु णराहिउ जाहिँ दुम्मणु एन्तु णिहालिउ मायएँ 'दिवे दिवे चडहि तुरङ्गम-रणाऍहिँ दिवे दिव वन्दिरण-विन्दै हिँ थुम्वहि दिवे दिवे धुव्वहि चमर-सहास हिँ दिवे दिवे लोयहिँ वुच्चहि राणउ तं रिणसुणेवि वलेण पजम्पिउ जामि माएँ दिढ हियवऍ होज्जहि
वलु रिणय-रिणलउ पराइउ तावै हिँ ॥1 पुणु विहसेवि वुत्तु पिय-वायएँ ॥2 अज्जु काइँ अणुवाहणु पाऍहिँ ॥3 अज्जु काइँ थुव्वन्तु रण सुव्वहि ॥4 अज्जु काइँ तउ को वि रण पासहि॥5 अज्जु काई दीसहि विद्दारणउ' ॥6 'भरहहाँ सयलु वि रज्जु समप्पिउ ॥7 जं दुम्मिय तं सव्वु खमेज्जहि ॥8
घत्ता-जें पाउच्छिय माय
अपराइय महएवि
'हा हा पुत्त' भणन्ती । महियले पडिय रुयन्ती ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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