SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गिरि-इ-पवाह ग वहन्ति पाय वयरणेण तेण किउ पहु-वियप्पु 'सच्चर चलु जीविउ कवणु सोक्खु घत्ता - सुहु महु-विन्दु-समु वरितं कम्मु किउ कं दिवसु वि होसइ श्रारिसाहुँ को हउँ का महि कहाँ तरगउ दव्वु जोव्वणु सरीरु जीविउ धिगत्थु विसु विसय वन्धु दिढ - वन्धणाइँ सुय सत्तु विदत्त श्रवहरन्ति जीवाउ वाउ हय हय वराय तणु तणु जे खरगद्धे यहाँ जाइ दुहिया वि दुहिय माया विमाय } धत्ता - प्रायइँ अवरइ मि पुणु तर करमि' धत्ता- दसरहु अण्ण- दि hara ra M Jain Education International 22.3 22.7 गन्धोवउ पावउ केम राय' 116 म-विसायहीँ राम - वप्पु ॥ 7 गउ परम तं किज्जइ सिज्झइ जेण मोक्खु ॥ 8 दुहु मेरु- सरिसु पवियम्भइ । जं पउ अजरामरु लब्भइ ॥ कञ्चुइ प्रवत्थ अम्हारिसाहुँ ।। 1 सिंहासणु छत्तइँ थिरु सव्व ॥ 2 संसार प्रसार प्रणत्थु प्रत्थु ॥ 3 घर दार परिहव - काररणाइँ ॥ 4 जर मरणहँ किङ्कर कि करन्ति ॥15 सन्दण सन्दण गय गय जे गाय | 6 धणु धणु जि गुरणेण वि वकु थाइ || 7 सम-भाउ लेन्ति किर तेरा भाय ॥18 सव राहवहीँ समवि । fra दसरहु एम aियप्पेंवि ॥ किर रामहों रज्जु समप्पइ । उन्हालऍ धररिण व तप्पइ ॥ For Private & Personal Use Only [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy