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९९७ - इरे तच्छीले । * विकमकालस्स गए अउणत्तीसुत्तरे सहस्सम्मि (१०२९) मालेवनरिंदधाडीए लूडिए मन्नखेडम्मि || २७६ धारानयरीए परिट्टिएण मग्गे ठिआए अणवजे । कज्जे बहिणीए 'सुंदरी' नामधिज्जाए || २७७ करणो अंध जण किवा कुसल ति पयाणमंतिमा वण्णा । नामम्मि जस्स कमसो तेणेसा विरइया देसी ॥२७८
कव्वेसु जे रसइढा सद्दा बहुसो कईहि बज्झन्ति । ते इत्थमए रइआ रमंतु हिअर सहिअयाणं || २७९
|| पाइअलच्छी नाममाला समत्ता ||
ચૂંટ
९९८- इल्लो तो औंलो य मउ अत्थे ||२७५
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९९७ 'इर स्वभाव सूचक प्रत्यय । ९९८
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मत्वर्थीय प्रत्यय तीन-' इल्ल इत्त तथा आल
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वाला ' अर्थ सूचक अर्थात्
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* विक्रम के १०२९ वर्ष बीत जाने पर जब मालव के राजाने मान्यखेट - मलेखडा - नगर पर धावा किया तब धारा नगरी के निर्दोष मार्ग पर रही हुई 'सुंदरी' नामकी अपनी छोटी बहिन के लिए धनपाल कविने यह देशी कोश प्राकृतलक्ष्मी नामका बनाया । २७६-२७७
कविने इस पद्य के पूर्वार्धके पदों के अंतिम अक्षरों से अपना नाम -- धणवाल अर्थात् धनपाल - सूचित किया है । नाम सूचक अक्षर बड़े करके मुद्रित किये हैं । २७८
काव्योंमें जो शब्द रसाढ्य हैं तथा कविजनोंने जिन शब्दोंका बहुत प्रयोग किया हुआ है उन सब शब्दोंका इस कोशमें संग्रह किया हुआ है, वे सब शब्द सहृदयोंके हृदयमें रमण करो । २७९
॥ प्राकृतलक्ष्मी नाममाला कोश समाप्त ॥
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