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________________ .. आचार्य हेमचंद्रने अपने 'अभिधानचिंतामणि' नामके कोश की स्वोपज्ञवृत्ति में "व्युत्पत्तिर्धनपालतः” ऐसा स्पष्ट निर्देश प्रारंभमें ही किया है. इससे ऐसा मालूम होता है कि धनपालने व्युत्पत्ति के संबंधमें कोश जैसा कोई ग्रंथ बनाया हो. इस संबंधमें श्रीविक्रमविजयमुनि (श्रीमद्विजयलब्धिसूरि शिष्य) लिखते हैं कि “तेमणे १८०० श्लोकप्रमाण संस्कृतभाषानो कोष बनाव्यानो उल्लेख मळे छे” इत्यादि-(केसरबाई जैन ज्ञानमंदिर प्रकाशित पाइअलच्छीनाममाला प्रस्तावना) अर्थात् ‘धनपालका बनाया हुआ कोई संस्कृत कोश है' ऐसा कोई उल्लेख उक्त मुनिश्रीने सूचित तो किया है परंतु वह उल्लेख किसने किया है, किस ग्रंथ में किया हैं ? इत्यादि कुछ भी सूचित नहीं किया है. अतः श्रीहेमचंद्राचार्य के उक्त उल्लेख से केवल एक ऐसी कल्पना होती है कि श्रीधनपालने कोई कोश भी बनाया हो. धनपाल इस प्रकारका महातेजस्वी, निःस्पृह, जैनधर्मका परमश्रद्धालु तथा असाधारणकोटिका पंडित था, श्रावक था. धनपाल जैसी प्रतिभा वर्तमानकालके श्रावकों में भी प्रकट हो यही अंतिम प्रार्थना. बेचरदास दोशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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