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________________ हुए अन्य कवियोंने राजाके असाधारण बलकी प्रशंसा की, तब राजाकी दृष्टि धनपाल पर भी गई कि वह भी इस प्रसंग का थोडा बहुत वर्णन करे. धनपालने शीघ्र ही निःसंकोच कह दिया कि"रसातलं यातु यदत्र पौरुषं क नीतिरेषाऽशरणो ह्यदोषवान् । निहन्यते यद् बलिनाऽपि निर्बलो हहा महाकष्टमराजकं जगत् " ॥ अर्थात् “ महाराज ! तुम्हारा यह बल रसातलमें जाए. जो शरणहीन है और निर्दोष है वह मारा जाता है. क्या यह भी कोई नीति है. बलवान द्वारा निर्बलका मारा जाना तो सरासर अन्याय ही है. हाय, क्या किया जाय ? जगत् अराजक बन गया है, यह बडा कष्ट है”। राजाने चुपचाप सुन लिया. फिर एक दूसरा भी प्रसंग ऐसा ही आ गयाः राजाने दूसरे किसी प्रसंग पर कविसे कहा कि कोई अच्छी जैनकथा हो तो हमको सुनाओ। तब धनपालने बारह हजार श्लोकप्रमाणं गद्यप्रचुर रसमय ऐसी तिलकमंजरी नामकी एक जैनकथाकी रचना की। जब कथा गूंथी जाती थी तब पुत्री उसको सुन लेती थी वा पढ़ लेती थी। एक बार पुत्रीने कविसे पूछा कि पिताजी, क्या अब वह कथा पूरी बन गई ? कथा पूरी बन चुकी थी। बादमें जैनशास्त्रके विरुद्ध ऐसी कोई बात कथामें अनजानसे न आगई हो, इसका निर्णय करके कथाको शुद्ध करने के लिए कविने अपने असाधारण सम्माननीय वादिवेताल श्रीशांतिसूरिको धारामें आनेके लिए आमंत्रण भेजा, उन्होंने आकर कथाको शुद्ध बना दिया, फिर कविने राजाको कथा सुनाना आरंभ किया। कथामें मुख्य चार वस्तुएं थीं- अयोध्या नगरी, भगवान् वृषभदेव आदि तीर्थकर, शक्रावतार तीर्थ और नायक रूप श्रीमेघवाहन नृपति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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