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________________ क्षेत्रसे सर्वथा अनभिज्ञ थे और जैन श्रावक तो शास्त्रको पढते ही नहीं थे. ऐसी परिस्थितिमें एक जर्मन पंडितने इस प्राकृत कोशका अच्छेसे अच्छा संपादन व प्रकाशन किया है. खूबी तो यह है कि भारतीय पंडित व मुनिजन सदाकाल सरस्वती पूजनमें और शास्त्रों के पूजनमें बडा रस रखते आए हैं. फिर भी उनको अपने शास्त्रों का अच्छा प्रकाशन व संपादन का कार्य नहीं सूझा, इतना ही नहीं कई पंडित तो ऐसे भी विद्यमान थे जो प्रकाशन प्रवृत्ति के ही खिलाफ थे. ऐसी भारी अज्ञानदशामें डॉ. बुल्हर महाशयने इस कोशको छाप कर हम पर बडा ही उपकार किया है. ऐसा कहने में व मानने में लवलेश भी अत्युक्ति नहीं है. ___आजसे बयालीस साल पहिले अर्थात् विक्रमसंवत् १९७३ में हमने ही बी. बी. एन्ड महाशयानां मंडलीके नामसे फिर उस कोशको अच्छी रीतिसे संशोधित करके और साथमें प्राकृत शब्दों के संस्कृत समानरूपोंको तथा गुजरातीमें अर्थ को दे कर और शब्दोंका अकारादि अनुक्रम लगाकर के छपवाया था. यह हमारा प्रकाशन अभी सर्वथा अप्राप्त है. उसके बाद विक्रम संवत् २००३ में इस कोश को श्रीकेसरबाई जैन ज्ञान मंदिर पाटण ( उत्तर गुजरात )ने फिर छपवाया. उसमें संशोधकने संस्कृत के समानशब्दों के साथ कोशस्थित प्राकृत शब्दों का अनुक्रम नहीं दिया है. इस प्रकारके संपादनसे पुस्तक तो तैयार हो जाती है परंतु 'कौन शब्द किस जगह है' इसका पता कोई विद्यार्थी व अन्य जिज्ञासु कैसे लगा सके ? बिना शब्दानुक्रम दिये यह कठिनाई दूर नहीं होती. भाई शादीलालजी जैन का सहकार अब हम फिरसे इस कोश का प्रकाशन कर रहे हैं. हमारे परममित्र और जैनधर्म के यथार्थ प्रेमी तथा जैनशास्त्र के रसिक भाई शादीलालजी जैन (अमृतसर वाले संचालक आर. सि. एच बरड़ एंड कं० बंबई) की संपूर्ण आर्थिक सहायता पाकर हम इस प्रकाशनको तैयार करनेमें समर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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