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________________ ३७ अलंकारदप्पण 'रजनी' और निश्वास का भी ‘वर्द्धन्ते' के साथ सम्बन्ध है। अपहति और प्रेमातिशय अलंकार का लक्षण उअमा जत्थ णिण्हविअ णिअडा सा अवण्हुई होइ । पीई अईसएणं पेमाइसओ भणेअव्वो ।।८९।। उपमा यत्र निहत्य निकटा सा अपह्नतिर्भवति । प्रीत्यतिशयेन प्रेमातिशयो भणितव्यः ।।८९।। जहाँ पर किसी (उपमेय) को छिपाकर (निषेध करके) साम्य अतिशय निकट हो जाता है उसे अपहृति अलंकार कहते हैं । प्रेम के अतिशय के कारण प्रेमातिशय अलंकार होता है। __ अपहृति अलंकार में उपमेय का निषेध करके उपमान की स्थापना की जाती है । इससे उपमान उपमेय में अतिसाम्य सूचित होता है । इसका लक्षण अन्य आलंकारिकों ने इस प्रकार किया है - अपह्नुतिरपहृत्य किञ्चिदन्यार्थदर्शनम्-दण्डी अतिसाम्यादुपमेयं यस्यामसदेव कथ्यते सदपि । उपमानमेव सदिति च विज्ञेयापह्नतिः सेयम् ।। रुद्रट प्रकृतं प्रतिषिध्यान्यत्साध्यते सा त्वपहृतिः । -मम्मट अपहृति अलंकार का उदाहरण देते हुए ग्रन्थकार कहता है - अपण्हुई जहा (अपहृतिर्यथा) णहु उच्च-विडअ-संठिअ-पहिट्ठ-कलअंठि-कलरव-प्पसरो। सुव्वइ वण-विलसिअ-पुप्फ-चाव-महुरो रवो एसो ।।९।। न खलु-उच्च विटपसंस्थितप्रहृष्टकलकण्ठीकलरवप्रसरः । श्रूयते वनविलसितपुष्पचापमधुरो रव एषः ।।९।। यह ऊँची शाखा पर बैठे हुए हर्षित कोकिल के अव्यक्त-मधुर ध्वनि का प्रसार नहीं सुनाई देता है अपितु यह (कोकिलध्वनि) वन में विलास करने वाले कामदेव का मधुर शब्द है। यहाँ पर 'कोकिलरव' उपमेय है उसका निषेध करके उसमें कामदेव के शब्द का स्थापन किया गया है । इससे कोकिलरव और 'कामदेव' में अतिसाम्य व्यङ्ग्य हो रहा है। यह अपहृति का उदाहरण आचार्य भामह के उदाहरण से पर्याप्त साम्य रखता है उनका उदाहरण है नेयं विरौति भृङ्गाली मदेन मुखरा मुहुः । अयमाकृष्यमाणस्य कन्दर्पधनुषो ध्वनिः । काव्या. ३/२२।। अगली कारिका में 'प्रेमातिशय' अलंकार का उदाहरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001707
Book TitleAlankardappan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages82
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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