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________________ प्रकाशकीय जैन साहित्य बहविध और विशाल है। गंभीर और मनोरंजक है। पाण्डित्यपूर्ण और लोकनीतिक है। सैकड़ों ग्रन्थ भण्डारों में वह अभी भी सुरक्षित है। पर कुछ ऐसे भी ग्रन्थभण्डार हैं जो न सुरक्षित हैं और न दूसरों के लिए प्रवेश्य हैं। ऐसे ग्रन्थ भण्डारों में कितनी अप्रकाशित कृतियाँ छिपी हुई पड़ी हैं, नहीं कहा जा सकता। उन्हें उपलब्ध कराया जा सके तो ग्रन्थ भण्डारों के कार्यकर्ताओं का एक बहुत बड़ा योगदान होगा। पार्श्वनाथ विद्यापीठ ऐसे ही प्राचीन ग्रन्थों को सम्पादित कर अनुवाद के साथ प्रकाशित करने की योजना लिये हुए है। यह योजना अन्य योजनाओं के साथ समान्तर रूप से चल रही है। अलंकारदप्पण अज्ञातकर्तृक प्राकृत रचना है जिसे श्री भंवरलाल नाहटा ने मरुधरकेसरी अभिनन्दन ग्रन्थ में हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित किया था सन् १९६८ में। उसे ही प्रोफेसर सुरेशचन्द्र पाण्डे ने पुनः अदित एवं व्याख्यायित किया है । इसका कुशल सम्पादन प्रोफेसर भागचन्द्र जैन ने किया है। अत: मैं उन सभी का आभारी हूँ। साथ ही डॉ० विजय कुमार भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने प्रेस सम्बन्धी दायित्व का पूर्ण निर्वहन किया है। सुन्दर अक्षरसज्जा के लिए राजेश कम्प्यूटर एवं ग्रन्थ मुद्रण के लिए वर्द्धमान मुद्रणालय को भी धन्यवाद देता हूँ। दिनांक : 15-03-2001 भूपेन्द्रनाथ जैन सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001707
Book TitleAlankardappan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages82
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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