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XII
ऐक्यारोप पाया जाता है। बिम्बप्रतिबिम्बभाव तथा सामानाधिकरण्य की दृष्टि से भी भेद है।
उद्भेद को अन्योक्ति के रूप में समझा जा सकता है। शोभाकर मिश्र के अलंकार रत्नाकर में “निगूढस्य प्रतिभेदः उद्भेद:' के रूप में इसका उल्लेख आता है। वलितालंकार किम् पद के प्रयोग के द्वारा श्रेष्ठवचन का कथन किया जाता है। यह अलंकार नया है ।
यमक शब्दालंकार है। सार्थक अथवा निरर्थक भिन्न अर्थवाले स्वर, व्यंजन समुदाय की आवृत्ति या पुनः श्रवण में यमक अलंकार होता है । दण्डी, रुद्रट, आनन्दवर्धन, कुन्तक, मम्मट आदि सभी आचार्यों ने यमक को स्वीकार किया है। भरत ने इसके दस भेदों का वर्णन किया है और भामह ने पाँच का । उत्तरकालीन सभी आचार्यों ने यमक को स्वीकार किया है। रुय्यक ने स्वर- व्यंजन समुदाय की पुनरुक्ति को यमक कहा है। रीतिकालीन आचार्यों का यमक निरूपण दण्डी तथा मम्मट से प्रभावित है। अलंकारदर्पण में पादादि, मध्यान्त, आवलि और सकलपदयमक के उदाहरण दिये गये हैं।
प्रस्तुत अलंकारदप्पण को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय सर्वश्री अगरचन्द नाहटा और भँवरलाल नाहटा को है। उनकी सदाशयता और सहयोगीवृत्ति के लिए हम उनके कृतज्ञ हैं। उनके सम्पादन, संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद का उपयोग प्रस्तुत संस्करण में किया गया है, एतदर्थ हम उनके कृतार्थ हैं। हमारी पाण्डुलिपि पिछले दो वर्षों से प्रेस में पड़ी थी । अभी-अभी पता चला है कि प्राकृत के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान् स्व० प्रो० भयाणी द्वारा सम्पादित अलंकारदप्पण का अहमदाबाद से प्रकाशन हुआ है । उसका भी हमने अपने सम्पादन में उपयोग किया है । अत: हम प्रो० भयाणी सा० के भी अभारी हैं।
इसके व्याख्याकार हैं संस्कृत जगत् के विश्रुत विद्वान् प्रोफेसर सुरेशचन्द्र पाण्डे, भूतपूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय जिन्होंने विषय को बड़ी गम्भीरता के साथ व्याख्यायित किया है । विद्यापीठ के लिए यह गौरव का विषय है कि उन्होंने संस्थान में प्राकृत विभागाध्यक्ष के रूप में समर्पित भाव से अपनी सेवायें दीं और यह साहित्यिक कार्य पूरा किया। इस योगदान के लिए हम उनके भी हार्दिक आभारी है।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ अप्रकाशित प्राचीन ग्रन्थों को आधुनिक शैली में सम्पादित कर/ कराकर अनुवाद के साथ प्रकाशित करने का संकल्प लिये हुए है। इसी उपक्रम में प्रस्तुत संस्करण सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है ।
वाराणसी
दिनाक : 15-03-2001
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प्रोफेसर भागचन्द्र जैन भास्कर
निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ,
वाराणसी
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