SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीया विभक्ति अस्मत् शब्द के तृतीया विभक्ति एकवचन के लिए मए (मया) १९२ और मे ( मया ) ४८० दो रूप प्राप्त होते हैं ।" षष्ठी विभक्ति - उत्तम पुरुष में मम के लिए क्रमशः मम, मे और मज्झ प्राप्त होते हैं जिनमें मज्झ रूप परवर्ती है यह प्राचीन नाटकों में नहीं मिलता है । मध्यम पुरुष में तव के लिए तुह १६४ प्राप्त होता है । यह भी परवर्ती काल का रूप है प्राचीन रूप तव, ते, तुज्झ आदि आगम ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं । " पुं० नपुं० अन्य पुरुष तत् शब्द का षष्ठी एकवचन का रूप क्रमश: तस्स, ( तस्य) से ( तस्य), ते ( तस्य ) । स्त्रीलिंग षष्ठी ब० व。 के लिए ताण ( तासाम्) १७४ शब्द प्राप्त होता है। जबकि प्राचीन प्राकृत में तेसं मिलता है । ताण से यह सिद्ध होता है कि इस ग्रन्थ की प्राकृत परवर्ती काल की है । सप्तमी विभक्ति अन्य पुरुष एकवचन के लिए निम्नलिखित विभक्तियाँ पायी जाती हैं - म्मि, -हिं, - म्हिं, -स्सिं इनमें से - म्हिं, कहिं (कस्मिन्) ७६ और -स्सिं अस्सिं (अस्मिन्) १८५ - ये दो विभक्तियां पालि भाषा की तरह प्राचीन हैं । अर्द्धमागधी में - स्सिं का लोप हो गया । - म्हिं का उल्लेख व्याकरण में नहीं है । -म्मि, -हिं, -म्हिं और -स्सिं विभक्तियों का अनुपात क्रमश: इस प्रकार है लिंगव्यत्यय इस प्रकार मिलता है प्रथमा विभक्ति २ : ८ : १ : १ नपुंसक के लिए पुंलिंग पंचसया (पञ्चशतानि ) ५४२ Jain Education International २८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy