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जैन साहित्य
और आचार्य परम्परागत है । इसमें हमें महावीर के जीवन के अतिरिक्त उनके अनेक शिष्यों गृहस्थ-अनुयायियों तथा अन्य तौर्थकों का परिचय मिलता है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है । आजीवक सम्प्रदाय के संस्थापक मंखलिगोशाल के जीवन का जितना विस्तृत परिचय यहां मिलता है, उतना अन्यत्र कहीं नहीं । स्थान-स्थान पर पाश्र्वापत्यों अर्थात् पार्श्वनाथ के अनुयाइयों, तथा उनके द्वारा मान्य चातुर्याम धर्म के उल्लेख मिलते हैं, जिनसे स्पष्ट हो जाता है कि महावीर के समय में यह निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय स्वतंत्र रूप से प्रचलित था । उसका महावीर द्वारा प्रतिपादित पंचमहाव्रत रूप धर्म से बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध था, एवं उसका क्रमशः महावीर के सम्प्रदाय में समावेश होना प्रारम्भ हो गया था । ऐतिहासिक व राजनैतिक दृष्टि से सातवें शतक में उल्लिखित, वैशाली में हुए महाशिलाकण्टक संग्राम तथा रथ- मुसल संग्राम, इन दो महायुद्धों का वर्णन अपूर्व है । कहा गया है कि इन युद्धों में एक और वज्जी एवं विदेहपुत्र थे, और दूसरी ओर नौ मल्लकी नौ लिच्छवी, काशी, कौशल एवं अठारह गणराजा थे । इन युद्धों में वज्जी, विदेहपुत्र कुणिक ( अजातशत्रु) की विजय हुई | प्रथम युद्ध में ८४ और दूसरे युद्ध में ६६ लाख लोग मारे गये । २१, २२ और २३ वें शतक बनस्पति शास्त्र के अध्ययन की दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण हैं । यहाँ नानाप्रकार से बनस्पति का वर्गीकरण किया गया है; एवं उनके कंद, मूल, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज के संजीवत्व, निर्जीवत्व की दृष्टि से विचार किया गया है ।
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६ - ज्ञातृधर्म कथा (नायाधम्मकहाओ ) - यह आगम दो श्रुतस्कंधों में विभाजित हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में १६ अध्याय हैं । इसके नाम की सार्थकता दो प्रकार से समझाई जाती है । एक तो संस्कृत रूपान्तर ज्ञातृधर्मकथा के अनुसार, जिससे प्रगट होता है कि श्रुतांग में ज्ञातृ अर्थात् ज्ञातृपुत्र महावीर के द्वारा उपदिष्ट धर्मकथाओं का प्ररूपण है । दूसरा संस्कृत रूपान्तर न्यायधर्मकथा मी सम्भव है, जिसके अनुसार इसमें न्यायों अर्थात् ज्ञान व नीति संबंधी सामान्य नियमों और उनके दृष्टान्तों द्वारा समझाने वाली कथाओं का समावेश है | रचना के स्वरूप को देखते हुए यह द्वितीय संस्कृत रूपान्तर ही उचित प्रतीत होता है, यद्यपि प्रचलित नाम ज्ञातृधर्मकथा पाया जाता है । अध्ययन में राजगृह के नरेश श्रेणिक के धारिणी देवी से उत्पन्न राजपुत्र मेघकुमार का कथानक है । जब राजकुमार वैभवानुसार बालकपन को व्यतीत कर व समस्त विद्याओं और कलाओं को सीखकर युवावस्था को प्राप्त हुआ, तब उसका अनेक राजकन्याओं से विवाह हो गया । एक बार महावीर के उपदेश
प्रथम
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