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व्याख्यान-२ जैन साहित्य
साहित्य का द्रव्यात्मक और भावात्मक स्वरूप
___ भारत का प्राचीन साहित्य प्रधानतया धार्मिक भावनाओं से प्रेरित और प्रभावित पाया जाता है । यहाँ का प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेदादि वेदों में है, जिनमें प्रकृति की शक्तियों, जैसे अग्नि, वायु, वरुण,(जल), मित्र, (सूर्य), द्यावापृथ्वी (आकाश और भूमि)उषः (प्रातः) आदि को देवता मानकर उनकी वन्दना और प्रार्थना सूक्तों व ऋचाओं के रूप में की गई है । वेदों के पश्चात रचे जाने वाले ब्राह्मण ग्रन्थों में उन्हीं वैदिक देवताओं का वैदिक मन्त्रों द्वारा आह्वान कर होम आदि सहित पूजा-अर्चा की विधियों का विवरण दिया गया है, और उन्हीं के उदाहरण स्वरूप उनमें यज्ञ कराने वाले प्राचीन राजाओं आदि महापुरुषों तथा यज्ञ करने वाले विद्वान ब्राह्मणों के अनेक आख्यान उपस्थित किये गये हैं। सूत्र ग्रन्थों की एक शाखा श्रोत सूत्र हैं, जिसमें सत्र रूप से यज्ञविधियों के नियम प्रतिपादित किये गये हैं, और दूसरी शाखा गृह्यसूत्र है, जिसमें गृहस्थों के घरों में गर्भाधान, जन्म, उपनयन, विवाह आदि अवसरों पर की जाने वाली धार्मिक विधियों व संस्कारों का निरूपण किया गया है। इस प्रकार यह समस्त वैदिक साहित्य पूर्णतः धार्मिक पाया जाता है।
___ इसी वैदिक साहित्य का एक अंग आरण्यक और उपनिषत् कहलाने वाले वे ग्रन्थ हैं, जिनमें भारत के प्राचीनतम दर्शन-शास्त्रियों का तत्वचिंतन प्राप्त होता है। यों तो
को अद्धा वेद क इह प्रवोचत् । कुत आजाता कुत इयं विसृष्टि : ॥ (ऋ. १०, १२६, ६)
अर्थात कौन ठीक से जानता है और कौन कह सकता है कि यह सृष्टि कहां से उत्पन्न हुई ? ऐसे तत्वचिंतनात्मक विचारों के दर्शन हमें वेदों में भी होते हैं ।
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