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जैन कला
उसके स्थान पर छोड़कर मूल प्रतिमा को अपने राज्य में ले आये, और उसे विदिशा में प्रतिष्ठित करा दिया, जहां वह दीर्घकाल तक पूजी जाती रही। इस साहित्य कथानक को हाल ही में अकोटा (बड़ौदा जनपद) से प्राप्त दो जीवन्तस्वामी की ब्रोन्ज-धातु निर्मित प्रतिमाओं से ऐतिहासिक समर्थन प्राप्त हुआ है । इनमें से एक पर लेख है, जिसमें उसे जीवन्त-सामि-प्रतिमा कहा है, और यह उल्लेख है कि उसे चन्द्रकुलकी नागेश्वरी श्राविका ने दान दिया था । लिपि पर से यह छठी शती के मध्यभाग की अनुमान की गई है । ये मूर्तियां कायोत्सर्ग ध्यानमुद्रा में हैं, किन्तु शरीर पर अलंकरण खूब राजकुमारोचित है । मस्तक पर ऊंचा मुकुट है, जिसके नीचे केशकलाप दोनों कंधों के नीचे झूल रहे हैं । गले में हारादि आभरण, कानों में कुडल, दोनों बाहुओं पर चौड़े भुजबंध व हाथों में कड़े और कटिबन्ध आदि आभूषण हैं । मुह पर स्मित व प्रसाद भाव झलक रहा है। इनकी मावाभिव्यक्ति व अलंकरण में गुप्तकालीन व तदुत्तर शैली का प्रभाव स्पष्ट है।
लगभग १४ वीं शती से पीतल की जिनमूर्तियों का भी प्रचार हुआ पाया जाता है । कहीं कहीं तो पीतल की बड़ी विशाल भारी ठोस मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं । आबू के पित्तलहर मंदिर में विराजमान आदिनाथ की पीतल की मूर्ति लेखानुसार १०८ मन की है, और वह वि० सं० १५२५ में प्रतिष्ठित की गई थी। मूर्ति अपने परिकर सहित ८ फुट ऊँची पद्मासन है, और वह मेहसाना (उत्तर गुजरात) के सूत्र धार मंडन के पुत्र देवा द्वारा निर्माण की गई थी। बाहुबलि की मूर्तियां
ब्रोन्ज़ की प्रतिमाओं में विशेष उल्लेखनीय है बाहुबलि की वह प्रतिमा जो अभी कुछ वर्ष पूर्व ही बम्बई के प्रिन्स ऑफ वेल्स संग्रहालय में आई है। बाहुबलि आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र व भरत चक्रवर्ती के भ्राता थे, और उन्हें तक्षशिला का राज्य दिया गया था। पिता के तपस्या धारण कर लेने के पश्चात् भरत चक्रवर्ती हुए, और उन्होंने बाहुबलि को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिये विवश करना चाहा। इस पर दोनों भाइयों में युद्ध हुआ। जिस समय युद्ध के बीच विजयश्री संशयावस्था में पड़ी हुई थी, उसी समय बाहुबलि को इस सांसारिक मोह और आसक्ति से वैराग्य हो गया, और उन्होंने अपने लिए केवल एक पैर भर पृथ्वी रखकर शेष समस्त राज्य-वैभव भूमि व परिग्रह का परित्याग कर दिया। उन्होंने पोतनपुर में निश्चल खड़े होकर ऐसी घोर तपस्या की कि उनके पैरों के समीप वल्मीक चढ़ गये व शरीर के अंग-प्रत्यंगों से महासर्प व लताएं लिपट गई । बाहुबलि की इस घोर तपस्या का वर्णन जिनसेन
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