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________________ जैन मन्दिर ३२७ है व आबू के चौमुखी मंदिर में भी पाया जाता है, और दीक्षित महोदय ने इस संभावना का संकेत भी किया है । (भा० वि० भ० इति० भाग ५-६३७) । मध्यभारत में आने पर हमें दो स्थानों पर प्राचीन जैन तीर्थों के दर्शन होते हैं। इनकी विख्याति शताब्दियों तक रही, और क्रमशः अधिकाधिक मंदिर निर्माण होते रहे और उनमें मूर्तियां प्रतिष्ठित कराई जाती रही, जिनसे ये स्थान देवनगर ही बन गये। इनमें से प्रथम स्थान है---देवगढ़ जो झांसी जिले के अन्तर्गत ललितपुर रेलवे स्टेशन से १६ मील तथा जारवलौन स्टेशन से ६ मील दूर बेतवा नदी के तट पर है। देवगढ़ की पहाड़ी कोई एक मील लम्बी व ६ फर्लाग चौड़ी है । पहाड़ी पर चढ़ते हुए पहले गढ़ के खंडहर मिलते हैं, जिनकी पाषाण-कारीगरी दर्शनीय है । इस गढ़ के भीतर क्रमशः दो और कोट हैं, जिनके भीतर अनेक मन्दिर जीर्ण अवस्था में दिखाई देते हैं। कुछ मंदिर हिन्दू हैं, किन्तु अधिकांश जैन, जिनमें ३१ मंदिर गिने जा चुके हैं। इनमें मूर्तियों, स्तम्भों, दीवालों, शिलाओं आदि पर शिलालेख भी पाये गये हैं, जिनके आधार से इन मंदिरों का निर्माण आठवीं से लेकर बारहवीं शती तक का सिद्ध होता है। सबसे बड़ा १२ वें नम्बर का शांतिनाथ मन्दिर है, जिसके गर्भगृह में १२ फुट ऊंची खड्गासन प्रतिमा है । गर्भगृह के सम्मुख लगभग ४२ फुट का चौकोर मंडप है जिसमें छह-छह स्तम्भों की छह कतारें हैं। इस मंडप के मध्य में भी वेदी पर एक मूर्ति विराजमान है । मंडप के सम्मुख कुछ दूरी पर एक और छोटा सा चार स्तम्भों का मंडप है जिनमें से एक स्तम्भ पर भोजदेव के काल (वि० सं० ६१६, ई० सन् ८६२) का एक लेख भी उत्कीर्ण है । लेख में वि० सं० के साथ-साथ शक सं० ७८४ का भी उल्लेख है । बड़े मंडप में बाहुबली की एक मूर्ति हैं जिसका विशेष वर्णन आगे करेंगे। यथार्थतः यही मंदिर यहां का मुख्य देवालय है, और इसी के आसपास अन्य व अपेक्षाकृत इससे छोटे मंदिर हैं। गर्भगृह और मुखमंडप प्रायः सभी मंदिरों का दिखाई देता हैं, या रहा है। स्तम्भों की रचना विशेष दर्शनीय है। इनमें प्रायः नीचेऊपर चारों दिशाओं में चार-चार मूर्तियाँ उत्कीर्ण पाई जाती है। यत्र-तत्र भित्तियों पर भी प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। कुछ मन्दिरों के तोरण-द्वार भी कलापूर्ण रीति से उत्कीर्ण हैं। कहीं-कहीं मन्दिर के सम्मुख मानस्तम्भ भी दिखाई देता है । प्रथम मन्दिर प्रायः १२ वें मन्दिर के सदृश, किन्तु उससे छोटा है । पांचवां मन्दिर सहस्त्रकूट चैत्यालय हैं, जो बहुत कुछ अक्षत हैं और उसके कूटों पर कोई १००८ जिन प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। जिन मंदिरों के शिखरों का आकार देखा या समझा जा सकता है, उन पर से इनका निर्माण नागर शैली का सुस्पष्ट हैं । पुरातत्व विभाग की सन् १९१८ को वार्षिक रिपोर्ट के अनुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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