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जैन कला
और जिनमें जैन चिन्ह पाये जाते हैं । ई० की द्वितीय अर्थात् क्षत्रप राजाओं के काल की सिद्ध होती हैं। जैनगुफाओं में की एक गुफा विशेष ध्यान देने योग्य है। इस गुफा से जो खंडित लेख मिला है उसमें क्षत्रप राजवंश का तथा चष्टन के प्रपौत्र व जयदामन के पौत्र रुद्रसिंह प्रथम का उल्लेख है । लेख पूरा न पढ़े जाने पर भी उसमें जो केवलज्ञान, जरामरण से मुक्ति आदि शब्द पढ़े गये हैं उनसे, तथा गुफा में अंकित स्वस्तिक, भद्रासन, मीनयुगल आदि प्रख्यात जैन मांगलिक चिन्हों के चित्रित होने से, वे जैन साधुओं की व सम्भवतः दिगंबर परम्परानुसार अंतिम अंग-ज्ञाता धरसेनाचार्य से सम्बन्धित अनुमान की जाती हैं। धवलाटीका के कर्ता वीरसेनाचार्य ने धर सेनाचार्य को गिरिनगर की चन्द्रगुफा के निवासी कहा है (देखो महाबंध भाग२ प्रस्ता०) प्रस्तुत गुफासमूह में एक गुफा ऐसी है जो पार्श्वभाग में एक अर्द्धचन्द्राकार विविक्त स्थान से युक्त है । यद्यपि भाजा, कार्ली व नासिक की बौद्ध गुफाओं से इस बात में समता रखने के कारण यह एक बौद्ध गुफा अनुमान की जाती है, तथापि यही धवलाकार द्वारा उल्लिखित धरसेनाचार्य की चन्द्रगुफा हो तो आश्चर्य नहीं । (दे० बर्जेसः एंटीक्विटीज प्रोफ कच्छ एण्ड काठियावाड़ १८७४-७५ पृ० १३६ आदि, तथा सांकलियाः आर्केप्रोलोजी आफ गुजरात, १९४१)। इसी स्थान के समीप ढंक नामक स्थान पर भी गुफाएं हैं, जिनमें ऋषभ पार्श्व, महावीर प्रादि तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ है। ये सभी गुफाएँ उसी क्षत्रप काल अर्थात् प्र० द्वि० शती की सिद्ध होती है । जैन साहित्य में ढंक पर्वत का अनेक स्थानों पर उल्लेख पाया है। वह पादलिप्त सूरि के शिष्य नागार्जुन यहीं के निवासी कहे गये हैं । (देखो रा० शे० कृत प्रबन्धकोश व विवधतीर्थंकल्प)।
पूर्व में उदयगिरि खंडगिरि व पश्चिम में जूनागढ़ के पश्चात् देश के मध्यभाग में स्थित उदयगिरि की जैन गुफाएँ उल्लेखनीय हैं । यह उदयगिरि मध्यप्रदेश के अन्तर्गत इतिहास प्रसिद्ध विदिशा नगर से उत्तर-पश्चिम की ओर बेतवा नदी के उस पार दो-तीन मील की दूरी पर है। इन पहाड़ों पर पुरातत्व विभाग द्वारा अंकित या संख्यात २० गुफाएं व मंदिर हैं। इनमें पश्चिम की पौर की प्रथम पूर्व दिशा में स्थित बीसवीं, ये दो स्पष्ट रूप से जन गुफाएं हैं। पहली गुफा को कनिघम ने झूठी गुफा नाम दिया है, क्योंकि वह किसी चट्टान को काटकर नहीं बनाई गई, किन्तु एक प्राकृतिक कंदरा है, तथापि ऊपर की चट्टान को छत बनाकर नीचे द्वार पर चार खंभे खड़े कर दिये हैं, जिससे उसे गुफा-मंदिर की आकृति प्राप्त हो गई है। स्तम्भ घट व पत्रावलि-प्रणाली के बने हुए हैं । जैसा ऊपर कहा जा चुका हैं, आदि में जैन मुनि इसी प्रकार की प्राक
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