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कला के भेद-प्रभेद
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यद्यपि ७२ कही गई हैं, तथापि पृथक् रुप से गिनने से उनकी कुल संख्या ८० होती है । इसके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न जैन पुराणों व काव्यों में जहां भी शिक्षण का प्रसंग आया हैं, वहाँ प्रायः कलाएं भी गिनाई गई हैं जिनके नामों व संख्या में भेद दिखाई देता है। उदाहरणार्थ, दसवीं शताब्दी में पुष्पदंत कृत अपभ्रंश काव्य नागकुमार-चरित (३, १) में कथानायक की एक नाग द्वारा शिक्षा के प्रसंग में कहा गया है कि उसने उन्हें 'सिद्धों को नमस्कार कहकर निम्न कलाएं सिखाई:-(१) अठारह लिपियां, (२) कालाक्षर, (३) गणित, (४) गांधर्व, (५) व्याकरण, (६) छंद, (७) अलंकार, (८) निघंट, (६) ज्योतिष (ग्रह गमन-प्रवृत्तियाँ), (१०) काव्य, (११) नाटकशास्त्र, (१२) प्रहरण, (१३) पटह, (१४) शंख, (१५) तंत्री, (१६) ताल आदि वाद्य, (१७) पत्रछेद्य, (१८) पुष्पछेद्य, (१६) फल छेद्य, (२०) अश्वारोहण, (२१) गजारोहण, (२२) चन्द्रबल, (२३) स्वरोदय, (२४) सप्तभौमप्रासाद-प्रमाण, (२५) तंत्र, (२६) मंत्र, (२७) वशीकरण, (२८) व्यूह-विरचन, (२६) प्रहारहरण, (३०) नानाशिल्प, (३१) चित्रलेखन, (३२) चित्राभास, (३३) इन्द्रजाल, . (३४) स्तम्भन, (३५) मोहन, (३६) विद्या-साधन, (३७) जनसंक्षोभन, (३८) नर-नारीलक्षण, (३६) भूषण-विधि, (४०) कामविधि, (४१) सेवा विधि, (४२) गंधयुक्ति, (४३) मणियुक्ति, (४४) औषध-युक्ति और (४५) नरेश्वर-वृत्ति (राजनीति)।
उपर्युक्त समवायांग की कला-सूची में कहीं-कहीं एक संख्या के भीतर अनेक कलाओं के नाम पाये जाते हैं, जिनको यदि पृथक् रुप से गिना जाय तो कुल कलाओं की संख्या ८६ हो जाती है। महायान बौद्ध परम्परा के ललितविस्तर नामक ग्रन्थ में गिनाई गई कलाओं की संख्या भी ८६ पाई जाती है, यद्यपि वहां अनेक कलाओं के नाम प्रस्तुत सूची से भिन्न हैं, जैसे अक्षुण्ण-वेधित्व, मर्मवेधित्व, शब्दवेधित्व, वैषिक आदि ।
कलाओं की अन्य सूची वात्स्यायन कत कामसूत्र में मिलती है। यही कुछ हेर-फेर के साथ भागवत पुराण की टीकाओं में भी पाई जाती है। इसे में कलाओं की संख्या ६४ हैं, और उनमें प्रस्तुत कलासूची से अनेक भिन्नताएं पाई जाती हैं। ऐसी कुछ कलाएं हैं-विशेषक छेद्य (ललाट पर चन्दन आदि लगाने की कला), तंडुल कुसुम बलिविकार (पूजानिमित्त तडुलों व फूलों की नाना प्रकार से सुन्दर रचना), चित्रयोग (नाना प्रकार के आश्चर्य), हस्तलाधव (हाथ की सफाई), तक्ष कर्म (काटछांटकर यथेष्ट वस्तु बनाना), उत्सादन, संवाहन, केशमदंन, पुष्पशकटिका आदि । कामसूत्र के टीकाकार यशोधर ने अपनी एक
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