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उदार नीति का सैद्धान्तिक आधार
किया है । रावण को दशमुखी राक्षस न मान कर उसे विद्याधर वंशी माना है, . जिसके स्वाभाविक एक मुख के अतिरिक्त गले के हार के नौ मणियों में मुख का प्रतिबिम्ब पड़ने से लोग उसे दशानन भी कहते थे। अग्निपरीक्षा हो जाने पर भी जिस सीता के सतीत्व के संबंध में लोग निःशंक नहीं हो सके, उस प्रसंग को जैन रामायण में बड़ी चतुराई से निबाहा गया है। सीता किसीप्रकार भी रावण से प्रेम करने के लिये राजी नहीं है इस कारण रावण के दुख को दूर करने के लिये उसे यह सलाह दी जाती है कि वह सीता के साथ बलात्कार करे । किंतु रावण इसके लिये कदापि तैयार नहीं होता । वह कहता है कि मैंने व्रत लिया है कि किसी स्त्री को राजी किये बिना मैं कभी उसे अपने भोग का साधन नहीं बनाऊंगा । इस प्रकार जैन पुराणों में रावण को राक्षसी वृत्ति से ऊपर उठाया गया है, और साथ ही सीता के अक्षुण्ण सतीत्व का ऐसा प्रमाण उपस्थित कर दिया गया है, जो शंका से परे और अकाट्य हो । इन पुराणों में हनुमान, सुग्रीव आदि को बंदर नहीं, किंतु विद्याधर वंशी राजा माना गया है, जिनका ध्वज चिह्न बानर था । इस प्रकार जैनपुराणों में जो कथाओं का वैशिष्ट्य पाया जाता है, वह निरर्थक अथवा धार्मिक पक्षपात की संकुचित भावना से प्रेरित नहीं है । उसका एक महान् प्रयोजन यह है कि उसके द्वारा लोक में औचित्य की हानि न हो, और साथ ही आर्य अनार्य किसी भी वर्ग की जनता को उससे किसी प्रकार की ठेस न पहुँचकर उनकी भावनाओं की भले प्रकार रक्षा हो ।
देश में कभी यक्षों और नागों की भी पूजा होती थी, और इसके लिये उनकी मूर्तियां व मन्दिर भी बनाये जाते थे । प्राचीन ग्रन्थों में इस बात के प्रमाण हैं । इनके उपासकों को इतिहासवेत्ता मूलतः अनार्य मानते हैं । जैनियों ने उनकी हिंसात्मक पूजा विधियों का तो निषेध किया, किन्तु प्रमुख यक्ष नागादि देवी देवताओं को अपने तीर्थंकरों के रक्षक रूप से स्वीकार कर, उन्हें अपने देवालयों में भी स्थान दिया है । राक्षस, भूत, पिशाच आदि चाहे मनुष्य रहे हों, अथवा और किसी प्रकार के प्राणी किन्तु देश के किन्हीं वर्गों में इनकी कुछ न कुछ मान्यता थी, जिसका आदर करते हुए जैनियों ने इन्हें एक जाति के देव स्वीकार किया है ।
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उदार नीति का सैद्धान्तिक आधार
जैनियों की उक्त संग्राहक प्रवृत्तियों पर से सम्भवतः यह कहा जा सकता है कि जैनधर्म अवसरवादी रहा है, जिसके कारण उनमें अनेक विरोधी बातों का समावेश कर लिया गया है । किन्तु गम्भीर विचार करने से यह अनुमान
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