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विषय सूची
१. जैन धर्म का उद्गम और विकास
पृष्ठ १-४६ जैन धर्म की राष्ट्रीय भूमिका-१, उदार नीति का सैद्धान्तिक आधार-५, प्राचीन इतिहास-९, आदि तीर्थंकर और वातरशना मुनि-११, वैदिक साहित्य के यति और वात्य-१८, तीर्थंकर नमि-१६, तीथंकर नेमिनाथ-२०, तीर्थंकर पार्वनाथ-२०, तीर्थंकर वर्धमान महावीर-२२, महावीर की संघ व्यवस्था और उपदेश-२४, महावीर निर्वाण काल-२५, गौतम केशी-संवाद-२६, श्वेताम्बर सम्प्रदाय के गणभेद-२८, प्राचीन ऐतिहासिक कालगणना-२६, सात निन्हव व दिगम्बरश्वेताम्बर सम्प्रदाय-३०, दिगम्बर आम्नाय में गणभेद-३१, पूर्व व उत्तर भारत में धार्मिक प्रसार का इतिहास-३३, दक्षिण भारत व लंका में जैन धर्म तथा राजवंशों से सम्बन्ध-३५, कदम्ब राजवंश-३६, गंग राजवंश-३७, राष्ट्रकूट राजवंश-३८, चालुक्य और होयसल राजवंश-३६, अन्य राजवंश-४१, गुजरातकाठियावाड़ में जैन धर्म-४१, जैन संघ में उत्तरकालीन पंथभेद-४४ ।
२. जैन साहित्य
पृष्ठ ४९-२११ ____साहित्य का द्रव्यात्मक और भावात्मक स्वरूप-४६, महावीर से पूर्व का साहित्य-५१, अंग-प्रविष्ट व अंग बाह्य साहित्य-५४, अर्धमागधी जैनागम-५५, अर्धमागधी भाषा-७०, सूत्र या सूक्त-७१, आगमों का टीका साहित्य-७२, शौरसेनी जैनागम-७३, षट्खंडागम टीका-७५, शौरसेनी आगम की भाषा-७६, नेमिचन्द की रचनाएं-७९, कुन्दकुन्द के ग्रन्थ-८३, द्रव्यानुयोग विषयक संस्कृत रचनाएं-८५, न्याय विषयक प्राकृत जैन साहित्य-८६, न्याय विषयक संस्कृत जैन साहित्य-८७, करणानुयोग साहित्य-६३, चरणानुयोग साहित्य-६८, मुनिआचार-प्राकृत-६८,मुनिआचार-संस्कृत-१०८,श्रावकाचार-प्राकृत-१०६, श्रावकाचार-संस्कृत-११३, ध्यान व योग-प्राकृत-११४, ध्यान व योग-अपभ्रश-११८, ध्यान व योग-संस्कृत-११६, स्तोत्र साहित्य-१२२, प्रथमानुयोग प्राकृतपुराण१२७, प्राकृत में तीर्थंकर चरित्र-१३४, प्राकृत में विशेष कथाग्रन्थ पद्यात्मक१३६ प्राकृत कथाएं-गद्य पद्यात्मक १४३, प्राकृत कथाकोष-१४६, अपभ्रंश भाषा का विकास-१५२, अपभ्रश पुराण-१५३, अपभ्रश में तीर्थंकर-चरित्र-१५७, अपभ्रंश चरित्र काव्य-१५८, अपभ्रंश लघुकथाएं-१६४, प्रथमानुयोग-संस्कृत
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