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के अप्रधानता परावर्तित थती होय छे. आ ग्रथरत्न समजवामां नयोनो विवेक घणो जाळववो पडे तेम छे.
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आ ग्रंथरत्नमां श्री भगवद् गीतानी पद्धतिनुं दर्शन थाय छे. नामाभिधानमां घणुं साम्य जणाय छे, छतां बोधपद्धति अने आदि पीठिकामां मोटुं अंतर छे. श्री भागवद् गीतानुं मंडाण युद्धभूमिमां थाय छे. युद्ध करवा नहि इच्छता अर्जुन जेवा दयाळुने उकेरवा बोध अपाय छे अने हिंसानी प्रेरणा अपाय छे. अर्जुन विषादमां आवो श्री कृष्णने जणावे छे के हे कृष्ण ! युद्ध माटे आवेला स्वजनोने जोई मारां गात्रो क्लेश अनुभवी रह्यां छे, मुख सोशाई रह्युं छे, शरीरकंप अनुभवे छे, रोम खडा थई गया छे, गांडीव हाथथी हेरुं पडे छे. शरीरमां दाह थई रह्यो छे. मारं मन भमी रह्युं छे. हुं युद्धभूमि उपर ऊभो नहि रही शकुं. हे गोविंद ! मारे विजयनी इच्छा नथी, राज्यसुखो जोईतां नथी. अरे मधुसूदन ! युद्धमां जे मारी सामे ऊभा छे ए मारा विद्यागुरुओ छे. काकाओ छे, पितामहो, पुत्रो, पौत्रो, मामाओ, ससराओ, साळाओ, स्नेहीओ छे. हुं राज्य खातर, सुखखातर हथियार नहि चलावु. कौरवोने मारवाथी मने शो लाभ छे ? हुं युद्ध नहि करं.
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श्री कृष्णे जोयुं के अर्जुन युद्धभूमिथी पाछो हठे तो बाजी बधी रगदोळाई जाय. आ भूमिकामांथी श्री भागवद् गीतानुं उत्थान थयुं छे.
एटले के युद्धना भीषण वातावरणमां पोताना पूज्यो, स्वजनो अने स्नेहीओनो विनश्वर अने मोहोत्पादक राज्यसत्ता अने भूमि खातर विनाश करवो ए अर्जुनने अयोग्य लाग्यं. युद्धभूमिथी निवृत्त थवानी अभीप्सा जागी एटले अर्जुनने उत्तेजित करवाना उद्देशथी श्री भगवद् गीता बनी. युद्धभूमिमां श्री भगवद् गीतानो जन्म थयो.
अने श्री जैन महावीर गीतानुं उत्थान एक अद्भुत स्थळे श्थाय छे. राजगृही नगरनुं रळियामणुं उद्यान छे. भक्तिशील देवोप १. जुओ श्री भगवद् गीता, अध्याय प्रथम.
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