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तेइसवाँ पाठ विध्यर्थ करन्त* के उदाहरण
मूलधातु में तिब्व, अपोप, अथवा अणिज्ज प्रत्यय लगाने से विध्यर्थ कृदन्त बनते हैं। तव्व प्रत्यय के पूर्व 'अ' को 'इ' और 'ए'' होता है।
तव्व
हस् + तव्व-हसितव्वं, हसेतव्वं (हसितव्यम् ) = हंसना चाहिए,
__ हसिअव्वं, हसेअव्वं । - हंसने योग्य । हो + तब्व-होइतब्वं, होएतव्वं (भवितव्यम् ) = होने योग्य, होइअव्वं, होएअव्वं
- होना चाहिए। होतव्वं, होयव्वं, होमव्वं ) ना + तब्य - नातव्वं, नायव्वं ( ज्ञातव्यम् ) = जानने योग्य,
जानना चाहिए। *पालि भाषा में तन्व, अनीय और 'य' प्रत्यय लग कर धातु का कृत्य प्रत्ययांत रूप बनता है । जैसे, भवितव्वं । सयनीयं । कारियं । तथा देय्यं, मेय्यं, मेतव्वं, मातव्वं, कच्चं (कृत्यम्), भच्चो (भृत्यः वगैरह रूप होते हैं ( दे० पा० प्र० पृ० २५४ )। अपभ्रंश भाषा में 'तब्ब' के स्थान में 'इएव्व', 'एव्व' तथा 'एवा' प्रत्यय का उपयोग होता है। जैसे---
कर + इएव्वउं-करिएव्वउं ( कर्तव्यम् ); सह + एव्वउं-सहेन्वउं (सोढव्यम्); जग्ग + एवा-जग्गेवा (जागरितव्यम्)। १. हे० प्रा० व्या० ८।३।१५७ ।
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