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________________ ( ३६७ ) अनियमित सम्बन्धक भूतकृदन्त कर् + तुंकातुं', काउं, कटु कर् + तण = कातूण, काऊण ( कृत्वा )= करके कर + तुआण = काउआण, कातुआण ) गह, + तुं = घेत्तु ,, + तूण = घेत्तूण, घेत्तणं . ( गृहीत्वा )= ग्रहण करके ,, + तुआण = घेत्तुआण, घेत्तुआणं). दरिस + तुं = द?', दटुं " तूण = दळूण, दळूणं ( दृष्ट्वा ) = देखकर तुआण = दळुआण, दळुआणं ) भुङ्ग्+तुं = भोत्तु ) (भुक्त्वा ) = भोजन करके, " तूण = भोत्तण, भोत्तणं खा कर, भोग कर। तुयाण = भौत्तुआण, भोत्तुआणं ) मुञ्च् + तुं = मोत्तु ( मुक्त्वा ) = छोड़ कर, " तण = मोतूण, मोत्तणं त्याग कर। , तुआण = मौत्तुआण, मोत्तुआणं ) इसी प्रकार 'रुद्' ऊपर से रोत्-रोत्तु, रोत्तूण, रोत्तुआण, ( रुदित्वा) = रोकर; 'वच्' धातु से वोत्-वोत्तु, बोत्तूण, वोत्तुआण, ( उक्त्वा ) = बोल कर; 'वंद्' धातु से वंदितुं, वंदित्तु ( वन्दित्वा ) = वन्दना करके; 'कर' से कटु, कटु ( कृत्वा ) = करके । (निर्देश :-'वंदित्तु" और 'कटुं' में 'तु के ऊपर का अनुस्वार लोप भी हो जाता है।) १. हे० प्रा० व्या० ८।४।२१४ । २. हे० प्रा० व्या. ८।४।२१०। ३. हे० प्रा० व्या० ८।४।२१३ । ४. हे . प्रा. व्या० ८।४।२१२। ५. हे० प्रा० व्या० ८।२।१४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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