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________________ ( ३६४ ) बनता है । 'तु' इत्यादि पहले चार प्रत्यय परे रहने पर पूर्व के 'अ' को 'इ' और 'ए' विकल्प से होते हैं। ___'तूण', 'तुआण' और 'इत्ताण' प्रत्यय के 'ण' के ऊपर अनुस्वार विकल्प से होता है । जैसे-तूण, तूणं, तुआण, तुआणं, इत्ताण, इत्ताणं । हस् + तुं-ई हसितुं, हसेतुं । ( हसित्वा ) = हंसकर । । हसिउ, हसे हो + अ + तुं-होइतुं, होएतुं ? ( भूत्वा ) = होकर । होइउं, होएउंड हो + तुं - होतुं, होउं ( भूत्वा ) = होकर। तूणहस्+तूण - 5 हसितूण, हसेतूण । (हसित्वा ) = हंसकर । हरिऊण, हसेऊण ) * पालि में सम्बन्ध भूतकृदन्त के उदाहरण रम् + इय = रमिय प्रा० रंता सं० रन्त्वा रम् + दूण = रंदूण , पैशाची भाषा में 'दूण' के स्थान पर 'तून' प्रत्यय होता है । जैसे गम् + तून = गंतून ( गत्वा ) हस् + तून = हसितून ( हसित्वा) पढ्+तून = पढितून (पठित्वा ) अपभ्रंश भाषा में इ, इउ, इवि, अवि, एप्पि, एप्पिणु, एवि, एविणु इनमें से कोई भी प्रत्यय लगाने से सम्बन्धक भूतकृदन्त बनता है । जैसे लह, + इ = लहि ( लब्ध्वा ) कर् + इउ = करिउ ( कृत्वा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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