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बाइसवाँ पाठ
कुछ नाम धातुएँ - संस्कृत में प्रेरक प्रक्रिया के अतिरिक्त और भी अनेक प्रक्रियाएँ हैं। जैसे सन्नन्त', यङन्त, यङ्लुबन्त और नामधातु प्रक्रिया । परन्तु प्राकृत में इनके लिए कोई विशेष विधान नहीं है । आर्ष प्राकृत में इन प्रक्रियाओं के कुछेक रूप अवश्य उपलब्ध होते हैं। अतः वर्ण-विकार अथवा उच्चारणभेद के नियमों द्वारा उन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। सन्नन्त-सुस्सूसइ ( शुश्रूषति )=सुनने की इच्छा करता है, शुश्रूषा
सेवा करता है।
वीमंसा ( मीमांसा) =विचार करना। यन्त-लालप्पइ (लालप्यते) = लप-लप करता है, बकवास करता है। यङ्लुगन्त-चंकमइ (चंक्रमीति ) = चंक्रमण करता है, घूमता
रहता है।
चंकमणं (चक्रमणम् ) = चंक्रमण-घूमा-घूमा करता है। - नाम धातु-गरुआइ ( गुरुकायते ) = गुरु की भांति रहता है ।
गरुआअइ (,,) = गुरु के जैसा दिखावा करता है । अमराइ ) ( अमरायते )= अमर-देववत् आचरण अमराअइ करता है, अपने आपको देव समझता है। तमाइ । (तमायते ) = तम-अंधेरा जैसा है, अंधेरा तमाअइ करता है।
१. पालि में भी सन्नंत, यङत, यङ्लुबंत तथा नामधातु के रूपों के लिए देखिए पा० प्र० पृ० २२९-२३३ ।
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