SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प०, ष०, ( ३११ ) द्वि० वडं ( वधूम् ) वहूउ, बहूओ', बहू (वधूः) तृ० वहू, वहूआ वहूहि, वहूहिं वहूइ, वहूए वहूहिँ, ( वधूभिः) च. वहू, वहूआ वहूण, वहूणं ( वधूभ्यः ) वहूइ, वहूए ( वध्व) वहूअ, वहूआ वहूइ, वहूए वहूउ , बहूओ वहुत्तो, वहूहितो वहूहितो, वहूसुंतो (वधूभ्यः) तृ०, च०, वधुया वधूहि, वधूभि (तृ.) वधूनं (च००) वधूसु (स०) सं० वधु ! वधू, वधुयो! पालि भाषा में इत्थी ( स्त्री ), मातु (मातृ), धोतु ( दुहित ), गावी (गो) वगैरह स्त्रीलिंगी शब्दों के विशेष रूप होते हैं ( देखिए पा० प्र० पृ० १०५, १०८, ११०)। 'गो' शब्द को प्राकृत भाषा में 'गउ' तथा 'गाअ' जैसे दो रूप होते हैं ( हे० प्रा० व्या० ८।१।१५८ )। उसमें 'गउ' का पुंलिंग में 'भाणु' जैसे रूप होते हैं, स्त्रीलिंग में 'धेणु' जैसे रूप होंगे । 'गाअ' का पुंलिंग में 'वीर' जैसे रूप बनेंगे तथा स्त्रीलिंग में 'गा' का 'गाई' अथवा 'गाआ' परिवर्तन होगा, 'गाई' का नदो जैसे रूप समझे तथा 'गाआ' का 'माला' जैसे रूप बना लें। ३. हे० प्रा० व्या० ८।१।११। ४. हे० प्रा० व्या० ८।३।२७ । ५. हे० प्रा० व्या० ८।३।३६ तथा ५ । ६. हे० प्रा० व्या० ८।३।५। ७. हे० प्रा० व्या० ८।३।२६ । ८. देखिए प० ३०५ टि० १ । 7.44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy