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________________ ( २८३ ) अत्थं ( अस्तम् ) = अस्त होना, छिपना, लोप होना । एगया ( एकदा )= एकदा, एक बार । कहि, कहिं ( कुत्र) = कहाँ। आम ( आम )= आम, 'हाँ' सूचक अव्यय । अंतो ( अंतर )= अभ्यन्तर, अन्दर । इओ ( इतः )= इससे, यहाँ से वाक्य, का आरम्भ । केवलं ( केवलम् ) = केवल, सिर्फ । तहि, तहिं ( तत्र ) = वहाँ । धातुएँ अच्चे ( अति + इ ) = अतीत, व्यतीत होना, पार पाना । पडि + वज्ज् ( प्रति + पद्य ) = पाना, स्वीकार करना । कोव ( कोप) = क्रोध करना, कराना । आ + गम् ( आ + गम् ) = आना । अहि +8 (अधि + स्था)= अधिष्ठान पाना, ऊपरी स्थान प्राप्त करना। एस् ( एष )= एषणा करना, शोधना। परि + व्वय् ( परि + व्वय् ) = परिव्रज्या लेना, बन्धनरहित होकर चारो ओर पर्यटन करना। सं+प + आउण् (सम् + प्र + आप् + नु)= सम्यक् प्रकार से पाना। आ + यय् ( आ + दय) = आदान करना, ग्रहण करना। परि + देव ( परि + दिव) = खेद करना । वि+ हड्। (वि + घट )= बिगड़ना, छिन्न-भिन्न होना, नाश होना। वि+ घड्। प+क्खाल (प्र+क्षाल)-प्रक्षालन करना, धोना । सम् + आ = समा+रंभ ( सम् +आ+रम्भ )= समारम्भ करना, मारना। णि + बिज्ज ( निर् + वेद् ) = निर्वेद पाना, विरक्त होना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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