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________________ ( २७८ ) पं० दायराओ, दायाराउ दायाराओ, दायाराउ दायरा दायाराहि, दायारेहि दाऊणो, दाऊओ, दाऊउ दायाराहितो, दायारेहितो ( दातृतः दातुः) दायारासुंतो, दयारेसुंतो दाऊणो, दाऊउ ( दातृतः ) दाउहितो, दाऊसुंतो (दातृभ्यः) ष० दायारस्स, दाउणो दायाराण, दायाराणं दाउस्स ( दातुः) दाऊण, दाऊणं ( दातणाम् ) स० दायारंसि, दायारम्मि दायारेसु, दायारेसुं दायारे ( दातरि ) दाउंसि, दाउम्मि दाऊसु, दाऊसुं ( दातृषु) सं० दायार ! दाय ! ( दातः) दायारा! ( दातारः) दायारो! दायारा! दाउणो, दायबो, दायओ दायउ, दाऊ (पिआ, पिअरं आदि रूपों में 'आ' तथा 'अ' के स्थान में 'या' और 'य' भी उपलब्ध होता है । जैसे-पिआ, पिया, पिअरं, पियरं, पिअरे, पियरे इत्यादि ।) सम्बन्धवाचक ऋकारान्त (पुंलिङ्ग) अंग भाउ, भायर ( भ्रातृ ) = भाई पिउ, पियर ( पितृ) = पिता जामाउ, जामायर (जामातृ)= जामाता विशेषणवाचक ऋकारान्त (पुलिङ्ग) अंग दाउ, दायार (दातृ) = दाता, भत्तु, भत्तार (भर्तृ) = भर्ता-भरणदातारं पोषण करनेवाला, भरि कत्त, कत्र ( कर्तृ) = कर्ता, करनेवाला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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