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नहीं हैं ) वे देश्य शब्द माने जाते हैं। ये देश्य शब्द बहुत प्राचीन हैं । वेद श्रादि प्राचीन शास्त्रों में, संस्कृतभाषा के साहित्य में तथा कोषों में देश्य शब्दों का प्रयोग बहुलता से हुआ है । देश्य शब्दों में बहुत से अनार्य तथा बहुत से द्राविड़ भाषा के शब्द भी मिले हुए हैं। श्री हेमचन्द्राचार्य ने ऐसे देश्य शब्दों का संग्रह कर 'देशीशब्द-संग्रह ' ( देसी-सह-संग्रह) नाम से एक स्वतंत्र कीश की रचना की है । उन्होंने स्वयं इस कोश की टीका भी लिखी है ।
संस्कृतसम प्राकृत शब्दों के दो प्रकार हैं। कुछ तो संस्कृत से बिल्कुल मिलते हैं, लेकिन कुछ थोड़ी समानता लिये हैं ।
हुए
संस्कृत से मिलते-जुलते नामरूप शब्द
प्राकृत
संसार
दाह
दावानल
नीर
संस्कृत
संसार
दाह
दावानल
नीर
संमोह
संमोह
धूलि
धूलि
समीर
समीर इत्यादि
संस्कृत से मिलते-जुलते क्रियापद
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प्राकृत
भेदति
हनति
धाति
मरते
संस्कृत
भेदति
हनति
धाति
मरते इत्यादि
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