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________________ ( ८ ) नहीं हैं ) वे देश्य शब्द माने जाते हैं। ये देश्य शब्द बहुत प्राचीन हैं । वेद श्रादि प्राचीन शास्त्रों में, संस्कृतभाषा के साहित्य में तथा कोषों में देश्य शब्दों का प्रयोग बहुलता से हुआ है । देश्य शब्दों में बहुत से अनार्य तथा बहुत से द्राविड़ भाषा के शब्द भी मिले हुए हैं। श्री हेमचन्द्राचार्य ने ऐसे देश्य शब्दों का संग्रह कर 'देशीशब्द-संग्रह ' ( देसी-सह-संग्रह) नाम से एक स्वतंत्र कीश की रचना की है । उन्होंने स्वयं इस कोश की टीका भी लिखी है । संस्कृतसम प्राकृत शब्दों के दो प्रकार हैं। कुछ तो संस्कृत से बिल्कुल मिलते हैं, लेकिन कुछ थोड़ी समानता लिये हैं । हुए संस्कृत से मिलते-जुलते नामरूप शब्द प्राकृत संसार दाह दावानल नीर संस्कृत संसार दाह दावानल नीर संमोह संमोह धूलि धूलि समीर समीर इत्यादि संस्कृत से मिलते-जुलते क्रियापद Jain Education International प्राकृत भेदति हनति धाति मरते संस्कृत भेदति हनति धाति मरते इत्यादि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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