SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४६ ) उन्होंने हाथ से पिंजरा फेंक दिया। किस को आँखें नहीं हैं ? पक्षी पिंजरे में कांपा और हिला ( सरका )। सेठ ने राजा को और राजा ने गणपति को नमस्कार किया। तुम पानी पीना चाहते हो? मुनियों का पति महावोर राजगृह में बिहार किया। वाक्य (प्राकृत ) मुणिणो सया जागरंति, अमुणिणो सया सुत्ता संति । 'घयं पिबामि' त्ति साहुस्स णो भवइ । पक्खीसु वा उत्तमे गुरुले विराजइ । मच्चू नरं णेइ हु अंतकाले। गहवइ मुणिणो बुद्धं दिज्ज । भूवइ, घरवइ य दोवि गुरुं वंदंति । महरिसी ! तं पूजयामु । न मुणो रण्णवासेण किंतु णाणेण मुणी होइ । नमो भूमिवइ कयावि न चडालियं कासी । भिक्खू धम्म आइक्खेज्जा । लोहेण जंतुणो दुक्खाणि जायंति । सिसुणो किं किं न छिदिरे ? जहा सयंभू उदहीण सेटे इसीण सेढे तह वद्धमाणे । एगे भिक्खुणो उदगेण मोक्खं पवयंति । सउणी पंजरंसि उड्डेइ । ते उवासगा भिक्खं निमंतयंति । १. 'भवई' अर्थात् योग्य होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy