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________________ ( ६ ) (१४) दण, दम, श्न, ष्ण, स्न, ह्र, ह्न, के स्थान में यह श्रथवा न्ह होता है । यथा : - तीक्ष्ण - तिराह - तिन्ह, सूक्ष्म - सराह, प्रश्न - परह - पन्ह, विष्णु-विरहु-विन्दुः स्नान-रहाण - न्हाण, प्रस्तुत - पण्हु - पन्हु | प्रस्नव- राहव - पन्हव, पूर्वाह्णपुण्वराह - पुन्ह, वह्नि - वरिह - वन्हि । (१५) क्त, प्त, त्न, त्म, त्र, त्व, र्त के स्थान में त्त तथा त होता है । जैसे :- भुक्त-भुत्त, सुप्त-सुत्त, पत्नी-पत्ती, श्रात्मा श्रत्ता, त्राण-ताण, शत्रु-सत्तु, स्वंतं, सत्त्व-सत्त, मुहूर्त - मुहुत्त । (१६) क्थ, त्र, थ्य, र्थ, स्त, स्थ के स्थान में त्थ तथा थ होता है । जैसे : - सिक्थक- सित्था, तत्र - तत्थ तथ्य - तत्थ, पथ्य - पत्थ, स्तम्भ - थंभ, स्तुति - थुइ, स्थिति - थिति । > (१७) ब्द, द्र, र्द, द्व, के स्थान में द्द तथा द होता है । जैसे :श्रब्द-श्रद्द, भद्र-मद्द, श्रार्द्र - ६, द्वि-दि, द्वैत-दइश्र, श्रद्वैत-अद्दश्र, द्वौ -दो | 1 *--- (१८) ग्ध, ब्ध, र्ध, ध्व, के स्थान में द्ध तथा घ होता है । जैसे स्निग्ध- निद्ध, लब्ध-लद्ध, अर्ध-श्रद्ध, ध्वनति-धरणइ । (१६) न्त के स्थान में न्द होता है ( शौरसेनी भाषा में ) । निश्चिन्त - निच्चिन्द, श्रन्तःपुर- श्रन्देउर । महत् - महन्त - महन्द, पन्चत् - पचन्त-पचन्द, प्रभावयत् - पभावन्त - पहावन्द, किन्तु - किन्दु | (२०) त्प, त्म, प्य, प्र, र्प, ल्प, प्ल, क्म, ड्रम के स्थान में प्प तथा प होता है । जैसे :- उत्पल - उप्पल, आत्मा - अप्पा, प्यायतेपायए, विज्ञप्य - विराणप्प, प्रिय-पिय, प्रिय - श्रप्पिय, अर्पयति अप्पे, अल्प- अप्प, प्लव-पव, विप्लव - विप्पव, प्लवते - पवए, रुक्म-रूप्प, रुक्मिणी- रुप्पणी, कुडमल- कुंपल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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