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________________ 'कर' का 'का' होने पर } ( २२५ ) का + सी = कासो का + हो = काही का + हीअ = काहीअ आर्ष प्राकृत में उपलब्ध अन्य अनियमित रूप : कर्- अकरिस्सं ( अकार्षम् ) कर्= क-अकासी ( अकार्षीत् ) बू - अब्बवी ( अब्रवीत् ) वच - अवोच ( अवोचत् ) İ अस् - प्रासी, आसि ( आसीत् ) आसिमु (आस्म ) बू - आह ( आह ) बू - आहु (आहु दृश - अदक्खू ( अद्राक्षुः ) Jain Education International १. पु० एकवच० ३. पु० " 72 73 "" ܕ ३. पु० बहुवचन "" 3, "" 17 11 १. पु० बहुव० ३. पु० एकव ० For Private & Personal Use Only 11 31 13 भू अभू ( अभूत अथवा अभुवन् ) एकव० तथा बहुव० हू अहू उक्त आर्षरूप संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं की भिन्नता को स्पष्ट रूप से निषेध करते हैं । ये सभी रूप केवल उच्चारणभेद के नमूने हैं। तथा इन आर्ष रूपों के साथ पालि रूप बहुत मिलते-जुलते हैं । पलिङ्ग आरिय (आर्य ) = आर्य, सज्जन । णायसुय, णातसुत ( ज्ञातसुत ) ज्ञातवंश का पुत्र - महावीर । छगलय ( छाग ) = बकरा | नायपुत्त, नातपुत्त, णातपुत्त ( ज्ञातपुत्र) = ज्ञातवंश का पुत्र - महावीर । देस ( देश ) = देश । मिलिच्छ ( म्लेच्छ ) = म्लेच्छ ( जातिविशेष ) । १५ www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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